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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यजुर्वेद

यजुर्वेद का संबंध यज्ञ से है।ज्ञान को कर्म में परिणित करना इसका उद्देश्य है।कर्म के लिए प्रेरित करने वाला शास्त्र होने के कारण ही इसे कर्मवेद के रूप में भी पहचाना जाता है।यजुर्वेद के पहले मंत्र में ही कर्म करने का आदेश है:  देवो व: सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मणे।  अर्थात सबका सृजन करने वाला देव ! तुम सबको श्रेष्ठ कर्म करने के लिए प्रेरित करो।  इसी तरह यजुर्वेद के अंतिम चालिसवें अध्याय के दूसरे मंत्र में कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा रखने को कहा गया है:  कुर्वन्नवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत समा:। इस वेद में यज्ञ के समय उपयोग में लाए जाने वाले नियमों एवं मंत्रों का वर्णन है। यह प्रमुखत: गद्य में है। यजुर्वेद मुख्यत: अध्वर्यु पुरोहितों की दिग्दर्शिका है; जो कर्मकांडों के नियमों का पालन करते थे।यजुर्वेद संहिता के दो भाग हैं: 1.कृष्ण यजुर्वेद 2. शुक्ल यजुर्वेद। 1. कृष्ण यजुर्वेद : कृष्ण यजुर्वेद की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि वेदव्यास ने अपने शिष्य वैशम्पायन को यजुर्वेद सिखलाया। वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य ऋषि को इसकी शिक्षा दी।बाद में किसी बात पर रुष्ट होकर वैशम्पायन ने अपन

ऋग्वेद

वै दिक संहिताओं में ऋग्वेद को सबसे प्राचीन स्वीकृत किया गया है।लोकमान्य तिलक ने ऋग्वेद का रचना काल 4000 ई.पू. से 6000ई.पू. के मध्य माना है।यद्यपि अन्य इतिहासकार और विद्वान इस मत से सहमत नहीं हैं, तथापि ऋग्वेद के प्राचीनतम ग्रंथ होने से सभी एकमत हैं।कतिपय विद्वानों ने ऋग्वेद को एक स्वतंत्र ग्रंथ न स्वीकार कर इसे विशालकाय ग्रंथ समूह माना है।इन विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद किसी एक ऋषि की रचना न होकर कई ऋषियों द्वारा विभिन्न कालों में रची गई रचना है। ऋ ग्वेद सूक्त वेद है। सूक्त का अर्थ है:उत्तम कथन।उत्तम कथन से युक्त मंत्रों के समूह को सूक्त कहते हैं।सूक्त को ऋक या ऋचा भी कहते हैं। ऋक का अर्थ है स्तुति योग्य मंत्र और वेद का अर्थ है ज्ञान।इस प्रकार ऋग्वेद का अर्थ हुआ-स्तुति योग्य मंत्रों (उक्तियों) का ज्ञान।ऋग्वेद की ऋचाओं में मुख्यत: देवताओं की स्तुतियाँ हैं।ऋषियों ने ज्ञान रूप में अपने चारों ओर जो दर्शन किया,उसे उन्होंने मंत्रबद्ध कर दिया।प्रकृति में अस्तित्व रखने वाली हर चीज उनके चिंतन का विषय रही।इसलिए देव-स्तुतियों के साथ-साथ लाभांश में सृष्टि के अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी हो गया।  ऋग्

अनुभव और गलत निर्णय

मुल्ला नसरुद्दीन से किसी ने पूछा , "सफलता का रहस्य क्या है?" "सही निर्णय पर काम करना, नसरुद्दीन ने कहा।" "लेकिन सही निर्णय किए कैसे जाते हैं?" "अनुभवों के आधार पर।" "और अनुभव किस प्रकार होते हैं?" नसरुद्दीन ने कुछ सोचा और फिर कहा, "गलत निर्णयों पर काम करके।"

क्रोध का स्रोत

यामाओकु तेशु एक युवा झेन-साधक हुआ। साधक वह जरूर था, पर अधीर इतना कि कभी किसी एक गुरु के पास न रहता । एक बार वह शोकोकू आश्रम के झेन-गुरु दोकुओन के पास गया।  अपना ज्ञान बघारते हुए यामाओका तेशु ने कहा, "मन,बुद्धि,चेतन,जगत आदि सब अस्तित्वहीन हैं । आभास मात्र। सत्य केवल शून्य है। और कुछ भी सत्य नहीं।कोई भ्रम नहीं।कोई महान नहीं,कोई अपूर्ण नहीं ...न किसी से कुछ लेना,न देना।" दोकुओन आराम से हुक्का गुड़गुड़ाते रहे, कोई प्रतिक्रिया नहीं की। अचानक उन्होंने हुक्का उठाया और यामाओका के सिर पर दे मारा। चोट खाया हुआ यामाओका क्रोध से आग-बबूला हो गया।  'अगर सबकुछ शून्य है', दोकुओन ने उससे पूछा, 'तो यह क्रोध कहाँ से आया?' 

मकर संक्रांति

सं क्रांति का अर्थ है संक्रमण। पौष महीने में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तो मकर संक्रांति होती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार मकर संक्रांति हमेशा 14 जनवरी को होती है।कभी-कभी यह 15 जनवरी को भी हो जाती है।यूं तो संक्रांति हर महीने में होती है।किंतु कर्क एवं मकर राशियों में सूर्य के जाने का विशेष महत्त्व होता है।यह संक्रमण क्रिया छ: छ: महीने के अंतर से होती है।मकर संक्रांति से पूर्व सूर्य दक्षिणायन रहते हैं।मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं।सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़े होने लगते हैं व रातें छोटी होने लगती हैं।हिंदु धर्म में मकर संक्रांति का दिन विशेष महत्त्व का होता है। तीर्थ-स्नान,गंगा स्नान का इस दिन बहुत अधिक महत्त्व होता है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं। हिंदु इस दिन स्नान आदि कर सूर्य-पूजा कर दान को पुण्य कर्म मानते हैं।दक्षिण भारत में इस पर्व को पोंगल कहा गया है।  मकर संक्रांति की सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएँ। यह उत्सव आपके जीवन में शुचिता लेकर आए । 

स्वप्न

च्वांगत्सू ने स्वप्न में देखा कि वह एक तितली है । रंग बिरंगी, पंख फड़फड़ाती, उड़ती, फूलों पर मँडराती ,तितली । तितली के रूप में उसे जरा भी ध्यान नहीं आया कि वह वास्तव में एक इंसान है । अपने मनुष्य रूप का कोई बोध उसके मन में नहीं था । फूलों पर मँडराते-मँडराते अचानक उसकी नींद टूटी । वह सोचने लगा ," क्या मैं एक मनुष्य हूँ, जो तितली होने का स्वप्न देख रहा था ? या मैं एक तितली हूँ जो मनुष्य होने का स्वप्न देख रही है ?"

शायद है

एक गाँव के एक धनी किसान के पास एक बहुत सुंदर घोड़ा था । एक दिन उसका वह घोड़ा बाड़े की बाड़ तोड़ कर  जंगल में भाग गया । गाँव के जिन लोगों को इस बात का पता चला, उन्होंने किसान के पास आ कर कहा, "आपका घोड़ा भाग गया, बड़े अफसोस की बात है ।"  "शायद है ।" किसान ने कहा ।  तीन दिन बाद घोड़ा वापस आ गया और साथ में पाँच बेहतरीन ताकतवर जंगली घोड़े भी ले आया । गाँव वालों ने किसान से कहा, "भई वाह! यह तो बड़ी खुशी की बात है ।"  "शायद है ।" किसान ने कहा ।  कुछ दिन बाद एक जंगली घोड़े को काबू करने की कोशिश में किसान का जवान बेटा अपने हाथ-पाँव जख्मी करवा बैठा । गाँव वाले आकर बोले, "आपका इकलौता जवान बेटा इतना घायल हो गया । आपके तो दिन ही खराब चल रहें हैं । बड़े दुख की बात है ।"  "शायद है ।" किसान ने कहा ।  अगले दिन राजा के सैनिक गाँव में आए । पड़ोसी देश से बड़ा भारी युद्ध छिड़ गया था । रोज  सैकड़ों लोग मारे जा रहे थे । सेना कम हो रही थी । इसलिए राज्य के सभी जवान लोगों को सेना में भर्ती होना अनिवार्य कर दिया गया था । गाँव के सभी जवानों को सैन

वेद : सामान्य परिचय

हिंदू धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ वेद हैं । इन्हें अपौरुषेय कहा गया है अर्थात इनकी रचना मनुष्यों ने नहीं की है । कहते हैं कि द्रष्टा ऋषि-मुनियों को सीधे ईश्वर से इनका ज्ञान प्राप्त हुआ । इस प्रकार स्वयं ईश्वर इनका स्रष्टा है । वेद शब्द की व्युत्पत्ति विद् धातु से हुई है, जिसका अर्थ है ज्ञान,सत्ता,विचारण और लाभ । इस प्रकार वेद का शाब्दिक अर्थ हुआ, जिसके कारण से मनुष्य अनेक विधाओं का ज्ञान अर्जित करते हैं, विचार करते हैं और मनुष्य होने का अर्थ सार्थक करते हैं, वही वेद है । निष्पत्ति रूप से कहा जा सकता है कि वेदों का उद्देश्य मनुष्य को समग्र अस्तित्व का ज्ञान करवाना है । वेदों को प्रारंभिक समय में लिपिबद्ध नहीं किया गया था । बल्कि यह गुरु-शिष्य परंपरा में श्रवण करके स्मृति में रखे जाते थे । इसी लिए वेदों को श्रुति कहा गया है । कालांतर में इन्हें लिपिबद्ध किया गया । वेदों की संख्या चार है : ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद । सबसे पुराना वेद ऋग्वेद है । ऋग्वेद में पद्य मंत्र हैं, यजुर्वेद में गद्य मंत्र हैं । सामवेद में सभी गेय मंत्र हैं तथा अथर्ववेद में अधिकांश पद्य मंत्र हैं । ऋग्वेद का व

न पानी, न चाँद

चाँदनी रात थी । एक झेन साधिका लकड़ी की बाल्टी में पानी भर कर आश्रम की ओर लौट रही थी । पानी में चाँद प्रतिबिंबित हो रहा था । बाल्टी पुरानी थी । अचानक बाल्टी जिस बाँस से बंधी थी वह टूट गया और उसका पेंदा निकल गया । पानी बिखर गया । इस घटना से साधिका को ज्ञान हुआ ।  बाद में उसने एक कविता लिखी  - ऐसे-वैसे, जैसे-तैसे बचाया मैंने जल-पात्र को, कि  कमजोर पड़ता जा रहा था बाँस का बंधन  और आखिर टूट ही गया पेंदा उसका न जल-पात्र में रहा पानी न पानी में चाँद !!! 

ध्यान की ओर यात्रा

जापान में एक प्रसिद्ध योद्धा हुए शिंगेन । इनकी पोती रियोनेन हुई । जो बहुत सुंदर होने के साथ-साथ काव्य-प्रतिभा की धनी भी थी । इसी कारण वह 17 वर्ष की अल्पायु में ही जापान की साम्राज्ञी की विशिष्ट सेविका चुनी गई और शीघ्र ही राज-परिवार में अपना सिक्का जमा लिया ।  एक दिन अकस्मात सम्राज्ञी का निधन हो गया । जिससे उसे जीवन की क्षण-भंगुरता का अनुभव हुआ । उसमें जीवन को जानने की तीव्र जिज्ञासा हुई जो शीघ्र ही मुमुक्षु की हद तक पहुँच गई । वह झेन-साधिका होकर साधना करना चाहती थी ।  परंतु उसके परिवार ने इसकी अनुमति न दी और उस पर विवाह का दबाव डाला । परिवार इस शर्त पर उसके झेन साधवी बनने पर राजी हो गया कि यदि वह विवाह-बंधन में बंधे और तीन बच्चों की मां बने तो वह  साधवी हो सकती है । उसने विवाह कर लिया और पचीस वर्ष की होते-होते तीन बच्चों की मां बन गई । अब उसे साधवी होने से कोई रोक नहीं सकता था । उसने साधवी का रूप धारण किया और झेन आश्रम का रुख किया ।  रियोनेन ईडो नाम के एक शहर पहुँची और झेन गुरु तेत्सुग्या से स्वयं को शिष्या के रूप में स्वीकार करने की विनती की । उसको कुछ देर देखने के बाद गुरु ने उसे

शेख और आलम

कवि आलम रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि हुए । इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण जाति में हुआ । उस समय देश में औरंगजेब का राज था । इनकी कवि प्रतिभा और चतुराई से औरंगजेब का लड़का बहुत प्रभावित था । उसके आग्रह पर ही आलम उनका राज कवि बना । एक बार उन्हें एक समस्या पहेली के रूप में दी गई और इसे पूरा करने के लिए कहा गया । दोहे की वह पंक्ति कुछ यूँ थी :- "कनक छरी सी कामिनी, काहे को कटि छीन " बहुत सोच-विचार करने पर भी वे इसके समाधान में दूसरी पंक्ति न सोच सके । जिस कागज पर यह पंक्ति लिखी गई थी, वह कागज उन्होंने अपनी पगड़ी में रख लिया । वह कागज उनकी पगड़ी के साथ धुलने के लिए रंगरेजिन के पास चला गया । कहते हैं कि वह रंगरेजिन बहुत सुंदर और चतुर थी । उसका नाम शेख था । जब उसने पगड़ी को धोने के लिए खोला, तो उसके हाथ वह कागज लगा, जिस पर पहेली-रूपी में वह पंक्ति लिखी थी । उसने समस्या को ध्यान से पढ़ा और उसके नीचे लिख दिया :- "कटि को कंचन काटि विधि कुचन मध्य धर दीनी ।" जब पगड़ी धुल गई तो उस कागज को ज्यों का त्यों उसमें रख दिया । जब आलम ने पगड़ी लेकर अपना कागज देखा तो उसमें समस्या का उत्तर लिखा हुआ द

मन की फड़फड़ाहट

उस दिन हवा बहुत वेग से बह रही थी । एक झेन आश्रम की ध्वजा फड़फड़ा रही थी । एक झेन साधक ने यह नजारा देख कर कहा, "देखो, धर्म की ध्वजा फड़फड़ा रही है ।"  दूसरे साधक ने कहा, "नहीं,ध्वजा केवल नजर आ रही है, असल में तो हवा फड़फड़ा रही है ।" तीसरा साधक जो अब तक दोनों साधकों की बात सुन रहा था,  उनके निकट आ कर धीरे से बोला, "ध्वजा नजर आ रही है, हवा महसूस हो रही है, किंतु फड़फड़ाहट तो मन में हो रही है ।" *** **  नव वर्ष 2011 में इस मन की फड़फड़ाहट शांत हो, इसी मंगल कामना के साथ इस ब्लॉग के सभी पाठकों को नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं ।