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बुद्ध की संगति का लोभ

ऐसी कथा है कि एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण शिष्य सारिपुत्र बुद्ध से दूर-दूर बैठता था। जबकि स्वभावतः लोग पास-पास बैठने कि कोशिश करते हैं। सारिपुत्र छिप-छिप कर बैठता था, कहीं झाड़ की आड़ में,कहीं भीड़ की आड़ में। और दस हजार शिष्यों में बहुत आसान था छिप- छिप कर बैठ जाना। एक दिन आखिर बुद्ध ने उसे पकड़ ही लिया  और कहा कि सारिपुत्र,यह तुम क्या कर रहे हो? सारिपुत्र ने कहा ,मुझे छोड़ दो, मुझे छिपा रहने दो। पर बुद्ध ने कहा,मामला क्या है? सारिपुत्र ने कहा कि मै बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं होना चाहता। बुद्ध ने कहा,तुम पागल हो गए हो? तुम मेरे पास आए इसलिए थे कि बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओ। उसने कहा,आया था वह मेरी गलती थी। जाने वाला नहीं हूँ; क्योंकि मै देखता हूँ रोज-रोज जो जो बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाते हैं उनसे आप कहते हैं,जाओ, अब मेरे सन्देश को दूर दूर पहुंचाओ। मै तो रोज-रोज डुबकी लूँगा,मै बुद्धत्व छोड़ सकता हूँ; लेकिन आपमें डुबकी लेना नहीं छोड़ सकता हूँ। अगर वचन देते हों कि मेरे बुद्धत्व के बाद भी मुझे इन चरणों में बैठने का हक़ होगा तो मै छिपना छोड़ दूँ। अन्यथा मै छिपता रहूँगा,अन्यथा मै बचता रहूँगा। म