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पुस्तक समीक्षा : 'खजाना' कहानी संग्रह

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मनोज कुमार पांडेय की सद्यःप्रकाशित पुस्तक ‘ख़जाना’ पढ़ी। यह कहानी संग्रह है जिसमें कुल आठ कहानियां संकलित है , जो इस रूप में प्रकाशित होने से पूर्व तद्भव , पक्षधर , रचना समय , अभिनव कदम , कादंबिनी और पल-प्रतिपल पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। संग्रह की तीन लंबी कहानियां हैं। ये हैं-चोरी , घंटा , मोह। मोह सबसे लंबी कहानी है। अन्य अपेक्षाकृत छोटी कहानियां  हैं। 'चोरी' ,' टीस' ,' मदीना' ,' खजाना' ,' कष्ट' आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई हैं। कहानियों    की बुनावट परम्परागत कहानी लेखन से हटकर है। लेखन में चित्रांकन है। चित्र बनता जरूर है , पर उस चित्र की   व्याख्या सहज   नहीं है। चित्रों   में उतनी ही जटिलता   है जितनी   कि   आधुनिक माडर्न आर्ट में। यह सूक्ष्म   अभिव्यंजना जरूर है , पर सामान्य जन-जीवन से इतर नहीं है। समय , समाज , व्यवस्था और मान्यताएं उनकी इन कहानियों में अपनी संपूर्ण विद्रूपताओं और विडम्बनाओं के साथ आरेखित हुई हैं। समाज की   जो   संवेदनाएं   कहीं   गहरे दफ़न   हो   गई हैं ,  उनको उघाड़ने और फिर से सृजित   करने   का एक प्रयास