चिंतन
  संप्रदायों,पंथों में बंटा हुआ व्यक्ति सत्य को नहीं पहचान सकता।       व्यक्ति की वैयक्तिक सोच,जब तक सृजन में साकार नहीं होती,तब तक व्यक्ति की सोच वायवीय समझी जाती है।एक पागलपन।सृजन के लिए यह पागलपन,जुनून जरुरी है।        किसी चीज की वयुत्पत्ति के लिए दो विरोधी तत्त्वों का मिलन आवश्यक है।        दूसरों को धोखा देने से पहले,व्यक्ति स्वयं को धोखा देता है।