यूं तन्हाई में रहने की आदत तो न थी जमाने की बेवफाई ने तन्हाई में रहना सीखा दिया ------------------------------ एक सपना मैंने देखा जो मेरा अपना था वो ही बेगाना निकला सपना क्या अपना और क्या बेगाना ---------------------------------------- जानें क्यों उससे प्रीत लगाई रातें क्यों उसके लिए जगाई जाने क्यों वो दिल में समाई वो ही जाने ये तो .... मैं इतना ही जानूँ कि प्रीत पराई .......................................................................................... जब जब मैं उसे देखूँ मेरी आँखों से कुछ रिसता हृदय की अतल गहराई में जा गिरता मैं मिटता, गिरता आनंदित पुलकित होता ....................................................................................................................
आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित यह ब्लॉग सत्य,अस्तित्व और वैश्विक सत्ता को समर्पित एक प्रयास है : जीवन को इसके विस्तार में समझना और इसके आनंद को बांटना ही इसका उद्देश्य है। एक सनातन गूंज...जो गूंज रही है अनवरत...उसी गूंज की अनुगूंज यहां प्रतिध्वनित हो रही है...