एक नदी है नाम है उसका मोत्जू। वैसे तो वह भी अन्य नदियों की तरह ही है। परंतु उसमें कुछ खास है तो वह है उसका शीतल जल और उसके किनारों पर सुंदर हरियाली। कहतें हैं यह दिव्य नदी है जो रूप बदल सकने में सक्षम है और कभी भी अपना रूप आकार बदल कर आस-पास के जीवन को प्रभावित कर सकती है। इसी नदी के एक तट पर रहता है संतसू किसान। यह किसान भी अपने आप में सबसे अलग है क्योंकि इसकी आवश्यकताएं सीमित हैं और चेहरे पर एक खुशी हर पल छायी रहती है। वह अपनी जरूरत का सामान मोत्जू नदी के तट से लगते अपने एकमात्र खेत से पूरी कर लेता है। भूख लगती तो खेत के अन्न-फल खा कर तृप्त हो जाता है। प्यास लगती तो मोत्जू का शीतल जल पी कर प्यास बुझा लेता है। इस प्रकार मोत्जू नदी और संतसू का परस्पर गहन संबंध है। एक बार मोत्जू नदी ने संतसू किसान की परीक्षा लेनी चाही कि देखूं संतसू मुझे कितना प्रेम करता है। गर्मियों के दिन हैं। संतसू अपने खेत में काम कर रहा है। प्यास लगी तो वह मोत्जू के तट पर आया और शीतल जल पीने लगा। तभी मोत्जू नदी ने अपना दिव्य रूप धारण किया और संतसू से पूछा, यदि मैं न होती तो क्या होता? संतसू ने अपने स्
आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित यह ब्लॉग सत्य,अस्तित्व और वैश्विक सत्ता को समर्पित एक प्रयास है : जीवन को इसके विस्तार में समझना और इसके आनंद को बांटना ही इसका उद्देश्य है। एक सनातन गूंज...जो गूंज रही है अनवरत...उसी गूंज की अनुगूंज यहां प्रतिध्वनित हो रही है...