एकाकी है यह जीवन चिंतन बहुत मनन बहुत पर है सूना बहुत कोई नहीं जिसे समझा सकूँ इस मन की पीड़ा को इस चिंता के विषय को इस मनन के बिंदु को बस छटपटा कर रह जाता हूँ एक अभाव से भर जाता हूँ कि मैं जैसा हूँ वैसा क्यों हूँ क्या मैं स्वयं जैसा होने को हूँ अभिशप्त या है यह स्वयं को समझने की सजा कि- चिंतन है मनन है विचार है पर कोई साथी नहीं जिसे समझा सकूँ ठीक वैसा जैसा मैं हूँ !!!
आध्यात्मिक विषयों पर केंद्रित यह ब्लॉग सत्य,अस्तित्व और वैश्विक सत्ता को समर्पित एक प्रयास है : जीवन को इसके विस्तार में समझना और इसके आनंद को बांटना ही इसका उद्देश्य है। एक सनातन गूंज...जो गूंज रही है अनवरत...उसी गूंज की अनुगूंज यहां प्रतिध्वनित हो रही है...