ओशो से किसी स्त्री ने प्रश्न किया, "ओशो! शास्त्र कहतें हैं- स्त्री नर्क का द्वार है।" इस पर आप क्या कहते हैं? ओशो ने कहा, "एक छोटी सी कहानी कहता हूं- ढब्बू जी की पत्नी धन्नो एक दिन उदास स्वर में अपनी सहेली गुलाबो से कह रही थी, "बहन, मैं तो परेशान हो गई हूं अपने पति से,वे मुझे हमेशा ही रामायण की यह चौपाई कि - ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी॥ कह कर प्रताड़ित करते रहते हैं। मैं तो तंग आ गई, यह सुन-सुन कर।" गुलाबो बोली,"अरे,इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है! मैंने कुछ ही दिन पहले एक नई चौपाई बनाई है,तू इसे गाया कर- ढोल गंवार पुरुष और घोड़ा। जितना पीटो उतना थोड़ा ॥" इसमें क्या चिंता लेनी है! स्त्रियों को अपनी चौपाइयां बना लेनी चाहिएं। अपने शास्त्र बनाओ,शास्त्रों पर किसी की बपौती है,किसी का ठेका है? चौपाई लिखने की कला कोई बाबा तुलसीदास पर खत्म हो गई है? याद कर लो इस चौपाई को- ढोल गंवार पुरुष और घोड़ा। जितना पीटो उतना थोड़ा ॥