धर्म

अपने अंतस को जान लेना और उसके अनुसार जीना धर्म है ।

धर्म आंतरिक अनुशासन-बद्धता का दूसरा नाम है । आंतरिक अनुशासन-बद्धता आ जाने से बाह्य अनुशासन स्वत: ही आ जाता है । धर्म ऋत है; जिसके कारण प्रकृति में संतुलन और लयबद्धता है ।

धर्म विश्वास नहीं है । धर्म एक साक्षात अनुभव है । जो हर ह्रदय में धारणीय है । जिससे ह्रदय के तार झंकृत हो उठते हैं और आत्मा नृत्य करने लगती है । यह नृत्य लय और ताल से आबद्ध है ।

धर्म अनेक नहीं हैं । धर्म अद्वैत की स्थिति है । जहां द्वंद्व नहीं, द्वैत नहीं, वहां धर्म है । प्रकृति भी धर्ममय है । प्रकृति का अपना आंतरिक अनुशासन है, जिसके कारण उसमें अद्भूत सौंदर्य है । वस्तुत: जहां अन्तस का प्रकाश है - वहां सौंदर्य है ।

धर्म का कोई संप्रदाय नहीं है । जहां संप्रदाय है, वहां धर्म नहीं है । धर्म एकांतिक अनुभव है ; जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड को जोड़ने की शक्ति है ।

धर्म मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा में नहीं, वह तो सर्वत्र है । अपने ह्रदय को रिक्त करो और वह धर्म-कणों से आपूरित हो जाएगा ।

टिप्पणियाँ

  1. "धर्म विश्वास नहीं है । धर्म एक साक्षात अनुभव है । जो हर ह्रदय में धारणीय है । जिससे ह्रदय के तार झंकृत हो उठते हैं और आत्मा नृत्य करने लगती है । यह नृत्य लय और ताल से आबद्ध है ।"

    मैं आपसे पूर्णतः सहमत हूँ. धर्म की बढ़िया जानकारी मिली आपके ब्लाग पर.
    आपका हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  2. मनोज जी , "rhidya' - rhuday स्पर्शी ( jo rhiday में द्य -विद्यमान हो ).
    लेकिन इस शब्दको जिस तरह से मै type करना चाह रही थी , वो हुआ नही . अभी भी मैंने rhiday स्पर्शी लिखा , र्हिद्य बदल के ...आभारी हूँ ,कि , आपने सुधारने की तकलीफ उठाई ...लेकिन 'rhiday' ये शब्द , मैंने कई तरीकों से type कर आज़माया ...मुझे जिस तरह चाहिए , उस तरह से वो नही अवतरित हुआ .

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