आवाज़
एक झेन साधक की मृत्यु हुई । उसके आश्रम के निकट ही एक अंधा वृद्ध रहता था । साधक की शोकसभा में उसने कहा –
“मैं जन्म से अंधा हूँ । लोगो के चेहरे नहीं देख सकता । लेकिन उनकी भावनाएँ उनकी आवाज़ से पहचान पाता हूँ । आमतौर पर मैं जब किसी को बधाई देते सुनता हूँ, तो आवाज के पीछे छिपी ईर्ष्या की गूँज भी मुझे सुनाई देती है । जब किसी को सांत्वना देते हुए सुनता हूँ तो छिपी हुई खुशी भी मुझ से बच नहीं पाती, कि चलो यह दु:ख हमें तो नहीं है । पर इस साधक को मैंने जब भी सुना, वह वही था, जो वह कह रहा था । जब यह बधाई देता था तो अंदर से बाहर तक खुश होता था । जब दु:ख जताता था तो सचमुच दु:खी होता था । “
sundar bhaavuk drishtaant
जवाब देंहटाएंबहुत गहरा बिचार दिए हैं आप सोचने के लिए.. अपका बिचार हमरे आज का पोस्ट का जनक है... आसिर्बाद देने जरूर आइएगा!! कोसिस किए हैं कि आपके भावनाओं को अछूता रखा सकें, कहाँ तक सफल हुए हैं ई त आप ही बता सकते हैं...
जवाब देंहटाएंआपने तो छोटे से दृष्टांत में काफी कुछ कह दिया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट
मान्यवर ! यह एक झेन कथा है ... जो हमें संपूर्णता से और भरपूर वैसा ही जीने के लिए प्रेरित करती है, जैसे हम हैं । कृपया इसे मेरी रचना न समझें ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा विचार!
जवाब देंहटाएंबस खुद जैसा हो जाना ही
जवाब देंहटाएंकितना मुश्किल काम हो गया है?
गहरा बिचार ......
जवाब देंहटाएं"वह वही था, जो वह कह रहा था"