ध्यान की ओर यात्रा
जापान में एक प्रसिद्ध योद्धा हुए शिंगेन । इनकी पोती रियोनेन हुई । जो बहुत सुंदर होने के साथ-साथ काव्य-प्रतिभा की धनी भी थी । इसी कारण वह 17 वर्ष की अल्पायु में ही जापान की साम्राज्ञी की विशिष्ट सेविका चुनी गई और शीघ्र ही राज-परिवार में अपना सिक्का जमा लिया ।
एक दिन अकस्मात सम्राज्ञी का निधन हो गया । जिससे उसे जीवन की क्षण-भंगुरता का अनुभव हुआ । उसमें जीवन को जानने की तीव्र जिज्ञासा हुई जो शीघ्र ही मुमुक्षु की हद तक पहुँच गई । वह झेन-साधिका होकर साधना करना चाहती थी ।
परंतु उसके परिवार ने इसकी अनुमति न दी और उस पर विवाह का दबाव डाला । परिवार इस शर्त पर उसके झेन साधवी बनने पर राजी हो गया कि यदि वह विवाह-बंधन में बंधे और तीन बच्चों की मां बने तो वह साधवी हो सकती है । उसने विवाह कर लिया और पचीस वर्ष की होते-होते तीन बच्चों की मां बन गई । अब उसे साधवी होने से कोई रोक नहीं सकता था । उसने साधवी का रूप धारण किया और झेन आश्रम का रुख किया ।
रियोनेन ईडो नाम के एक शहर पहुँची और झेन गुरु तेत्सुग्या से स्वयं को शिष्या के रूप में स्वीकार करने की विनती की । उसको कुछ देर देखने के बाद गुरु ने उसे शिष्या के रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया,क्योंकि वह बहुत सुंदर थी । रियोनेन झेन-गुरु हाकुओ के पास गई । उसने भी उसे यह कह कर शिष्या के रूप में अस्वीकार कर दिया कि उसकी सुंदरता अनेक समस्याओं को जन्म देगी ।
रियोनेन को कहीं से एक इस्तिरी हासिल हुई । उसने उसे गर्म करके अपने चेहरे पर रख लिया । उसका सुंदर चेहरा क्षण भर में ही कुरुप हो गया । विद्रुप हो जाने पर झेन-गुरु हाकुओ ने उसे शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया । अपनी दीक्षा की याद में रियोनेन ने एक कविता लिखी :-
"जब साम्राज्ञी की सेवा में थी
मैं जलाती थी लोबान
सुंगंधित करने को
अपने सुंदर वस्त्र
एक अनिकेत संन्यासिन के रूप में
अब मैं जलाती हूँ अपना चेहरा
कि दाखिल हो सकूँ
एक झेन-आश्रम में "
इस संसार से अपनी विदाई की घड़ी में उसने एक और कविता लिखी :-
" छियासठ बार देखा है मैंने
अपनी आँखों से
पतझड़ के दृश्यों को
वसन्त में बदलते
ख़ूब कर चुकी मैं
चाँदनी की बातें
कुछ न पूछो और
अब सुनों केवल
देवदारु और तून वृक्षों की आवाज़
हवा जबकि बिल्कुल बंद हो !"
उफ! कितनी सुन्दर थी रियोनेन इसका अन्दाज़ा इस झेन कथा से हुआ!
जवाब देंहटाएंरियोनेन जैसी मुमुक्षा,अस्तित्व हर खोजी को दे!
स्तब्ध कर देने वाली प्रेरक कथा..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन , प्रेरक रचना, आभार।
जवाब देंहटाएंअद्भत कहानी है झेन की और भयानक भी ....
जवाब देंहटाएंएक अनिकेत संन्यासिन के रूप में
अब मैं जलाती हूँ अपना चेहरा
कि दाखिल हो सकूँ
एक झेन-आश्रम में "
शिष्या बनने के लिए चेहरा कुरूप कर ले .....अविश्वस्वनी ...!