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सिटनालटा

एक बार विद्वान लोगों के एक समूह ने ओशो को बोलने के लिए आमंत्रित किया। ओशो ने आमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया और नियत दिन सभा को संबोधित करने पहुंचे। ओशो ने इस समूह के साथ चर्चा का जो विषय चुना वह था : "सिटनालटा- एक अनोखा समाज"। उन्होंने उस समाज के संबंध में बोलते हुआ कहा कि हमारे शरीर में सात चक्र नहीं,बल्कि सत्रह चक्र होते हैं। सिटनालटा समाज ने यह खोज निकाला था। यह पुरातन विद्या अब लुप्त हो गई है। लेकिन निर्वाणप्राप्त 'सिटनालटा' के इस इस गुप्त,गुह्य रहस्य को जानने वालों की एक गुप्त संस्था आज भी सक्रिय है। इन लोगों को जीवन के सभी रहस्यों का पता है। उनके पास ऐसी-ऐसी शक्तियां हैं,जिनकी सामान्य लोग कल्पना भी नहीं कर सकते।
सभा के अंत में सभापति ओशो से बोले कि उन्हें सिटनालटा के बारे में पता है। एक और व्यक्ति आकर कहने लगा कि वह सिटनालटा का सदस्य है। फिर उनके पास पत्र आने लगे उन लोगों के जो दावा करते थे कि वे भी उस रहस्यमयी संस्था के सदस्य हैं।
ओशो मन ही मन हंसे,क्योंकि सत्य तो यह था कि भाषण से पहले ओशो एटलांटिस नामक महाद्विप के बारे में पढ़ रहे थे। ऐसा माना जाता है कि यह महाद्विप कहीं लुप्त हो गया है। ओशो को शरारत सूझी,और उन्होंने एटलांटिस के अंग्रेजी शब्द-विन्यास को उल्टा करके 'सिटनालटा' बना दिया, और उसके संबंध में विद्वान लोगों के सम्मुख विवेचन करने लगे और लोग उन पर मोहित हो गए।
ओशो इस संदर्भ को लेते हुए कहते हैं कि ऐसा होता है विश्वास। विश्वास हमें आश्वासन देता है और बात जितनी विचित्र होती है, लोग उतना ही उसे मानने को तत्पर हो जाते हैं। लोग कुछ भी मानने को तैयार हो जाते हैं,यदि उन्हें आश्वासन मिले।े

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