एक कवि एक सुंदर
बाग के एकांत में सरोवर तट पर एक लंबे घने वृक्ष के नीचे बैठा कविता लिख रहा था।
आसपास कोई भी नहीं था। एक कोवा वृक्ष की डाल पर बैठा था।
कवि अपनी पहली
कविता कहता है :
सारी दुनिया की संपत्ति का
मैं मालिक
सोलोमन का खजाना भी
मैंने पा लिया
कुबेर का खजाना भी
मैंने पा लिया
ऊपर बैठा कौवा कांव-कांव करता है और
कहता है “सो व्हॉट? , इससे क्या हुआ?
कवि बहुत हैरान
हुआ। कवि कह रहा है मैं कुबेर हो गया,सारी संपत्ति मेरी हो गई और कौवा कह रहा है
सो व्हॉट?
कवि ने क्रोध
में ऊपर देखा, और कहा,” ना समझ कौवे तू क्या समझेगा?”
कौवे ने कहा,
ठीक कहते हैं आप, धन की बात कोई दूसरा कौवा भी नहीं समझेगा। धन की बात सिवाए आदमी
के कोई भी नहीं समझेगा। ना कोई विश्वास करेगा।“
लेकिन तुम समझते
हो कि हम धन की बात नहीं समझते, इसलिए ना समझ हैं। तो यह बात नहीं है। सच बात तो
ये है कि हम किसी चीज को बिना खोजे विश्वास नहीं करते।
कवि ने कहा ,
ठीक है, तुम्हें विश्वास नहीं आता तो दूसरी कविता सुनाता हूं :-
सारी पृथ्वी का राज्य मैंने पाया
चक्रवर्ती सम्राट मैं कहलाया
स्वर्ण सिंहासनों पर विराजा मैं
सब कुछ मैं हूं
सब कुछ मेरा है
इतना कहने के बाद कवि फिर आदत के
अनुसार कौवे की तरफ़ देखता है। कौवा फिर कहता है सो व्हॉट? इससे क्या हुआ? कवि फिर
चौंक गया। उसने सोचा मालूम होता है कि कौवा न धन की बात समझता है, न यश की। शायद
कोई संन्यासी कौवा है, इसे संन्यास की कविता सुनाता हूं।
फिर कवि तीसरी
कविता कहता है:-
मैंने सब खो दिया
तभी जाना कि मैं परमात्मा हूं
मैं जीवन से हट गया
और मैं मुक्त हो गया
मैं मोक्ष का आनंद भोग रहा हूं
लेकिन कौवा इस बार फिर बोला “ सो
व्हॉट? इससे क्या हुआ? कवि तो घबड़ा कर खड़ा हो गया। और कहने लगा,हर चीज़ में कहते हो
सो व्हॉट? मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं।
कौवा बोला मुझे
विश्वास दिलाने की जरूरत नहीं है। मैं तो हर चीज़ पर संदेह करता हूं। हां, अगर यही
कविताएं तुम किसी आदमी को सुनाआगे तो वह अवश्य ही विश्वास कर लेगा क्योंकि वह लकीर
का फ़कीर है।
सटीक ... कितना कुछ कह दिया इस कथा में ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!
हटाएंबिल्कुल सही बात , आज लकीर का फकीर नही बने रहे और समीक्षा करें तो किसी को बुरा लग जावें । इसलिए भी तो .....
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