विश्वासघात
घात कोई भी हो, पीड़ा तो देता ही है । पर सबसे बड़ा घात है विश्वास में घात । विश्वासघात की पीड़ा को वही जान सकता है, जिसने इसे भोगा हो ।
विश्वास सब संबंधों की नींव है । जितना बड़ा संबंध होता है वहां उतना ही ज्यादा विश्वास होता है । कहा जाता है जितना ज्यादा विश्वास होता है ; उतना ही ज्यादा उन संबंधों में प्रेम होता है । और जब प्रेम किसी से होता है तो विश्वास स्वमेव आ जाता है । विश्वास प्रेम की छाया है । जहां प्रेम नहीं वहां विश्वास भी नहीं होता । आधुनिक खोजें कहती हैं कि विश्वास कम या ज्यादा नहीं होता । वह या तो होता है या नहीं होता । और विश्वास की धारणा बच्चे में बचपन से उसके परिवार से ही सबसे ज्यादा बनती है ; यदि बच्चा अपने परिवार के लोगों से विश्वास नहीं अर्जित कर पाता; तो वह जीवन में कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाएगा ।
संसार विविधताओं और अनेक ध्रुवों से युक्त है । इसमें छल, कपट, धोखे और अनेक आघात-प्रतिघात हैं । आदमी अपने स्वार्थपूर्ति के लिए अनेकों बार विश्वासघात करता है । लेकिन वह नहीं जानता कि जब किसी का विश्वास टूटता है, तो उसके अंतस अथवा आत्मा को कितना आघात पहुँचता है । धोखा खाया हुआ आदमी बहुत बार मनुष्यता से विश्वास खो बैठता है ।
उधर सत्य का दूसरा पक्ष भी है । संसार में केवल छली,कपटी और धोखेबाज लोग ही नहीं हैं, बल्कि सच्चे, सच्चरित्र, स्नेही और दूसरों की पीड़ा, कष्ट को समझने वाले लोग भी हैं । और अक्सर देखा गया है कि इन अच्छे लोगों से परमात्मा बड़ी चुनौतीपूर्ण परिक्षाएँ लेता है । इन्हें हम संबंधों में बहुत बार देख सकते हैं । संबंधों में अक्सर अच्छे लोग बुरे लोगों के समक्ष खड़े होते हैं । इन संबंधों में जहां अच्छे आदमी की अच्छाई की परीक्षा होती है, वहीं बुरे आदमी को सुधरने का अवसर भी मिलता है ।
शायद इसी लिए कहा गया है कि जीवन परीक्षाओं का नाम है ; अच्छा मनुष्य परीक्षा और चुनौतियों में खरा उतरता है ।
विश्वास सब संबंधों की नींव है । जितना बड़ा संबंध होता है वहां उतना ही ज्यादा विश्वास होता है । कहा जाता है जितना ज्यादा विश्वास होता है ; उतना ही ज्यादा उन संबंधों में प्रेम होता है । और जब प्रेम किसी से होता है तो विश्वास स्वमेव आ जाता है । विश्वास प्रेम की छाया है । जहां प्रेम नहीं वहां विश्वास भी नहीं होता । आधुनिक खोजें कहती हैं कि विश्वास कम या ज्यादा नहीं होता । वह या तो होता है या नहीं होता । और विश्वास की धारणा बच्चे में बचपन से उसके परिवार से ही सबसे ज्यादा बनती है ; यदि बच्चा अपने परिवार के लोगों से विश्वास नहीं अर्जित कर पाता; तो वह जीवन में कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाएगा ।
संसार विविधताओं और अनेक ध्रुवों से युक्त है । इसमें छल, कपट, धोखे और अनेक आघात-प्रतिघात हैं । आदमी अपने स्वार्थपूर्ति के लिए अनेकों बार विश्वासघात करता है । लेकिन वह नहीं जानता कि जब किसी का विश्वास टूटता है, तो उसके अंतस अथवा आत्मा को कितना आघात पहुँचता है । धोखा खाया हुआ आदमी बहुत बार मनुष्यता से विश्वास खो बैठता है ।
उधर सत्य का दूसरा पक्ष भी है । संसार में केवल छली,कपटी और धोखेबाज लोग ही नहीं हैं, बल्कि सच्चे, सच्चरित्र, स्नेही और दूसरों की पीड़ा, कष्ट को समझने वाले लोग भी हैं । और अक्सर देखा गया है कि इन अच्छे लोगों से परमात्मा बड़ी चुनौतीपूर्ण परिक्षाएँ लेता है । इन्हें हम संबंधों में बहुत बार देख सकते हैं । संबंधों में अक्सर अच्छे लोग बुरे लोगों के समक्ष खड़े होते हैं । इन संबंधों में जहां अच्छे आदमी की अच्छाई की परीक्षा होती है, वहीं बुरे आदमी को सुधरने का अवसर भी मिलता है ।
शायद इसी लिए कहा गया है कि जीवन परीक्षाओं का नाम है ; अच्छा मनुष्य परीक्षा और चुनौतियों में खरा उतरता है ।
शायद इसी लिए कहा गया है कि जीवन परीक्षाओं का नाम है ; अच्छा मनुष्य परीक्षा और चुनौतियों में खरा उतरता है ।
जवाब देंहटाएंउचित ही कहा है, बशर्ते मानदंड क्या तय किये गए हैं इस पर भी विचार होना चाहिए..
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com