अश्रु
वह
ह्रदय की
मृदु भूमि में
दफ़न करती रही
कोमल बीज भावनाओं को और
मृदु हिय भूमि मरु बनती रही
एक रोज प्रेम की
वर्षा हुई
ह्रदय की मरु भूमि
फिर से मृदु हुई
समझ की हवाओं से
विश्वास की उष्मा से
दमित भाव
अंकुरित हो उठे
और
अश्रु बन आँख से
झरने लगे
आंखे जो पत्थरा गई थी
दमन से, प्रताड़ना से और द्वंद्व से
धुल गई एक ही फुहार में
और देख पा रही हैं
जीवन को आज नए ढ़ंग से ...
ह्रदय की
मृदु भूमि में
दफ़न करती रही
कोमल बीज भावनाओं को और
मृदु हिय भूमि मरु बनती रही
एक रोज प्रेम की
वर्षा हुई
ह्रदय की मरु भूमि
फिर से मृदु हुई
समझ की हवाओं से
विश्वास की उष्मा से
दमित भाव
अंकुरित हो उठे
और
अश्रु बन आँख से
झरने लगे
आंखे जो पत्थरा गई थी
दमन से, प्रताड़ना से और द्वंद्व से
धुल गई एक ही फुहार में
और देख पा रही हैं
जीवन को आज नए ढ़ंग से ...
अतिसुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है! बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंवाह अद्भुत रचना !! जीवन को नए अंदाज से देखने के लिए आँखों का अश्रुपूरित होना जरुरी है !!
जवाब देंहटाएंताजी वर्षा से धुली साफ़ सुथरी और नर्म पत्ती सी लगी यह कविता । आभार
जवाब देंहटाएंachchaa likhaa hai...
जवाब देंहटाएं