ज्ञान
ज्ञान जब आदत बन जाता है, तो व्यर्थ हो जाता है ।
ज्ञान आदत में नहीं है, बल्कि सजगता का फल है ।
ज्ञान जब तृप्ति देता है, तो पूर्ण होता है ।
पूर्ण ज्ञान अपूर्णता के द्वार न खोले तो वह बंधन है ।
ज्ञान इंद्रिय-अनुभव है, पर हर ज्ञान अनुभव नहीं है ।
सत्य का अनुभव पहले होता है, तब वह ज्ञान बनता है ।
एक ही अनुभव बार-बार नहीं होता, हर अनुभव अद्वितीय है ।
हर अनुभव का ज्ञान अनूठा है ।
एक ही अनुभव की बार-बार कल्पना करना अज्ञानता है ।
क्योंकि कोई भी अनुभव पुनरावृत्त नहीं होता ।
जो पुनरावृत्त हो वह ज्ञान नहीं ।
ज्ञान हर पल नया होता है ।
आदत अज्ञानता है क्योंकि वह नये के लिए बंधन है ।
ज्ञान आदत में नहीं है, बल्कि सजगता का फल है ।
ज्ञान जब तृप्ति देता है, तो पूर्ण होता है ।
पूर्ण ज्ञान अपूर्णता के द्वार न खोले तो वह बंधन है ।
ज्ञान इंद्रिय-अनुभव है, पर हर ज्ञान अनुभव नहीं है ।
सत्य का अनुभव पहले होता है, तब वह ज्ञान बनता है ।
एक ही अनुभव बार-बार नहीं होता, हर अनुभव अद्वितीय है ।
हर अनुभव का ज्ञान अनूठा है ।
एक ही अनुभव की बार-बार कल्पना करना अज्ञानता है ।
क्योंकि कोई भी अनुभव पुनरावृत्त नहीं होता ।
जो पुनरावृत्त हो वह ज्ञान नहीं ।
ज्ञान हर पल नया होता है ।
आदत अज्ञानता है क्योंकि वह नये के लिए बंधन है ।
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंbahut hee acchee rachana .badhai
जवाब देंहटाएंवैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
जवाब देंहटाएंमेरी द्रष्टि में जीवन ही परमात्मा है और जीवन ही मोक्ष है ...जो व्यक्ति जीने की कला को जान लेता है और जीने की गहराइयों में उतर सकता है , जीवन की ऊँचाइयों को छु लेता है , वह आदमी फिर नहीं पूछता की जीवन का लक्ष्य क्या है ...? जीवन अपने में काफी है ...जीवन पर्याप्त है ....
जवाब देंहटाएंby ....osho
ओशो की यह दृष्टि समझ में आ जाए, तो जीवन के मायने ही बदल जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंज्ञान जब आदत बन जाता है, तो व्यर्थ हो जाता है ।
जवाब देंहटाएंज्ञान आदत में नहीं है, बल्कि सजगता का फल है ।
ज्ञान जब तृप्ति देता है, तो पूर्ण होता है ।
पूर्ण ज्ञान अपूर्णता के द्वार न खोले तो वह बंधन है ।
ज्ञान इंद्रिय-अनुभव है, पर हर ज्ञान अनुभव नहीं है ।
सत्य का अनुभव पहले होता है, तब वह ज्ञान बनता है.
gyan ki gaharai par likhi hui ye rachana kafi achchhi hai .