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पुस्तक समीक्षा :: डॉ. सुप्रिया पी की पुस्तक हिंदी उपन्यास के विदेशी पात्र

हिंदी उपन्यासों में आए विभिन्न विदेशी पात्रों के माध्यम से समाज में आए विभिन्न परिवर्तनों और व्यक्ति की वैचारिक सोच को प्रतिबिंबित करती डॉ. सुप्रिया पी की पुस्तक "हिंदी उपन्यास के विदेशी पात्र" पढ़ने को मिली। पुस्तक में कुल पंद्रह ऐसे हिंदी  उपन्यास चुने गए हैं, जिनमें विदेशी पात्र आए हैं। ये उपन्यास हैं : अज्ञेय का "अपने अपने अज़नबी;  निर्मल वर्मा का "वे दिन": सुनीता जैन का "सफ़र के साथी" ; उषा प्रियंवदा का "रूकोगी नहीं राधिका"; प्रभाकर माचवे का "तीस चालीस पचास"; महेन्द्र भल्ला का " दूसरी तरफ"; योगेश कुमार का "टूटते बिखरते लोग"; भगवती स्वरूप चतुर्वेदी का "हिरोशिमा की छाया में"; मीनाक्षी पुरी का "जाने पहचाने अजनबी";नासिरा शर्मा का "सात नदियां एक समन्दर"; प्रभा खेतान का "आओ पेपे घर चलें"; मृदुला गर्ग का "कठगुलाब"; कमल कुमार का "हैमबरगर"; उषा प्रियंवदा का " अन्तर्वंशी"; राजी सेठ का "निष्कवच" । इस तरह छह पुरुष व आठ महिला लेखकों के उपन्या