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अहंकार:एक रहस्यवादी कहानी

एक नदी है नाम है उसका मोत्जू। वैसे तो वह भी अन्य नदियों की तरह ही है। परंतु उसमें कुछ खास है तो वह है उसका शीतल जल और उसके किनारों पर सुंदर हरियाली। कहतें हैं यह दिव्य नदी है जो रूप बदल सकने में सक्षम है और कभी भी अपना रूप आकार बदल कर आस-पास के जीवन को प्रभावित कर सकती है। इसी नदी के एक तट पर रहता है संतसू किसान। यह किसान भी अपने आप में सबसे अलग है क्योंकि  इसकी आवश्यकताएं सीमित हैं और चेहरे पर एक खुशी हर पल छायी रहती है। वह अपनी जरूरत  का सामान मोत्जू नदी के तट से लगते अपने एकमात्र खेत से पूरी कर लेता है। भूख लगती तो खेत के अन्न-फल खा कर तृप्त हो जाता है। प्यास लगती तो मोत्जू का शीतल जल पी कर प्यास बुझा लेता है। इस प्रकार मोत्जू नदी और संतसू का परस्पर गहन संबंध है। एक बार मोत्जू नदी ने संतसू किसान की परीक्षा लेनी चाही कि देखूं संतसू मुझे कितना प्रेम करता है। गर्मियों के दिन हैं। संतसू अपने खेत में काम कर रहा है। प्यास लगी तो वह मोत्जू के तट पर आया और शीतल जल पीने लगा। तभी मोत्जू नदी ने अपना दिव्य रूप धारण किया और संतसू से पूछा, यदि मैं न होती तो क्या होता?  संतसू ने अपने स्

उच्च आत्मा की ओर:ओशो का आह्वाहन

हिंदुस्तान में दो विपरीत ढंग के प्रयोग पचास सालों से चले। (वर्ष 1967). एक प्रयोग गांधी ने किया। एक प्रयोग श्री अरविंद ने। गांधी ने एक-एक मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाने का प्रयोग किया। उसमें गांधी सफल होते हुए दिखाई पड़े,लेकिन बिलकुल असफल हो गए। जिन लोगों को गांधी ने सोचा था कि इनका चरित्र मैंने उठा लिया,वे बिलकुल मिट्टी के पुतले साबित हुए। जरा पानी गिरा और सब रंग-रौगन बह गया। बीस साल में रंग-रौगन बह गया। वह हम सब देख रहे हैं। कहीं कोई रंग-रौगन नहीं है। वह जो गांधी ने पोतपात कर तैयार किया था,वह वर्षा में बह गया। जब तक पद की वर्षा नहीं हुई थी तब तक उनकी शकलें बहुत शानदार मालूम पड़ती थी और उनके खादी के कपड़े बहुत धुले हुए दिखाई पड़ते थे और उनकी टोपियां ऐसी लगती थी कि मुल्क को ऊपर उठा लेंगी। लेकिन आज वे ही टोपियां मुल्क में भ्रष्टाचार की प्रतीक बन गई हैं। गांधी ने एक प्रयोग किया था,जिसमें मालूम हुआ कि वे सफल हो रहे हैं,लेकिन बिलकुल असफल हो गए। गांधी जैसा प्रयोग बहुत बार किया गया और हर बार असफल हो गया।  श्री अरविंद एक प्रयोग करते थे जिसमें वे सफल होते हुए मालूम पड़े,लेकिन उनकी दिशा बिल

स्त्री की सुंदरता का रहस्य

शायद आपको पता नहीं होगा,स्त्री पुरुषों से ज्यादा सुंदर क्यों दिखाई पड़ती है? शायद आपको खयाल न होगा,स्त्री के व्यक्तित्व में एक राउन्डनेस,एक सुडौलता क्यों दिखाई पड़ती है? वह पुरुष के व्यक्तित्व में क्यों नहीं दिखाई पड़ती? शायद आपको खयाल में न होगा कि स्त्री के व्यक्तित्व में एक संगीत,एक नृत्य,एक इनर डांस,एक भीतरी नृत्य क्यों दिखाई पड़ता है जो पुरुष में नहीं दिखाई पड़ता।  एक छोटा-सा कारण है। एक छोटा सा,इतना छोटा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इतने छोटे-से कारण पर व्यक्तित्व का इतना भेद पैदा हो जाता है। मां के पेट में जो बच्चा निर्मित होता है उसके पहले अणु में चौबीस जीवाणु पुरुष के होते है और चौबीस जीवाणु स्त्री के होते हैं। अगर चौबीस-चौबीस के दोनों जीवाणु मिलते हैं तो अड़तालीस जीवाणुओं का पहला सेल(कोष्ठ)निर्मित होता है। अड़तालीस सेल से जो प्राण पैदा होता है वह स्त्री का शरीर बन जाता है। उसके दोनों बाजू 24-24 सेल के संतुलित होते हैं।  पुरुष का जो जीवाणु होता है वह सैंतालिस जीवाणुओं का होता है। एक तरफ चौबीस होते हैं,एक तरफ तेइस। बस यहीं संतुलन टूट गया और वहीं से व्यक्तित्व का भी।