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कुछ मुक्तक

यूं तन्हाई में रहने की आदत तो न थी जमाने की बेवफाई ने तन्हाई में रहना सीखा दिया ------------------------------ एक सपना मैंने देखा जो मेरा अपना था वो ही बेगाना निकला सपना क्या अपना और क्या बेगाना ---------------------------------------- जानें क्यों उससे प्रीत लगाई रातें क्यों उसके लिए जगाई जाने क्यों वो दिल में समाई वो ही जाने ये तो .... मैं इतना ही जानूँ  कि प्रीत पराई .......................................................................................... जब जब मैं उसे देखूँ मेरी आँखों से कुछ रिसता हृदय की अतल गहराई में जा गिरता मैं मिटता, गिरता आनंदित पुलकित होता ....................................................................................................................

साहित्य क्या है

साहित्य का आनंद हर पढ़े-लिखे व्यक्ति ने जिंदगी में अपने-अपने ढंग से लिया ही है और जब कभी वह कुछ अच्छा पढ़ता है तो उसे दूसरों में बाँटने का भाव भी उसमें उमगता ही है । आपस में बांटने के लिए उस आनंद का कुछ ब्यौरा भी देना पड़ता है । उसे यह बताना पड़ता है कि जो अच्छा लगा वह क्या है और वह उसे क्यों अच्छा लगा । इस अच्छे लगने के पीछे शब्द और उसके अर्थ-ग्रहण का भाव निहित है ।  संस्कृत में एक शब्द है : वाङ्मय अर्थात भाषा में जो कहा गया या लिखा गया हो वह वाङ्मय है । वाङ्मय के अंतर्गत समस्त ज्ञान आ जाता है ।  वाङ्मय के दो भेद माने गए हैं : शास्त्र और काव्य । शास्त्र के अंतर्गत सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान- चाहे वे भौतिक विज्ञान हों या फिर समाज विज्ञान या मानविकी । लेकिन जिसे साहित्य कहा जाता है वह विशुद्ध रूप से काव्य है । यह काव्य साहित्य क्यों कहा जाने लगा, इसे समझ लेना चाहिए । संस्कृत में काव्य की प्राचीनतम परिभाषा है : शब्दार्थो सहितौ काव्यम । शब्द और अर्थ का सहित भाव काव्य है । इस परिभाषा में सहित शब्द इतना महत्वपूर्ण है कि कालांतर में यह सहित भाव ही साहित्य के रूप में काव्य के लिए स्वीकृत

जुंग के अनमोल विचार

खुशियों से सावधान रह ।  शांति ठीक वहां से शुरु होती है, जहां महत्त्वाकांक्षा का अंत हो । यदि यह जान लिया जाए कि परिग्रही अपनी प्रचुरता का कितना कम भोग-उपभोग कर पाते हैं, तो संसार से बहुत सी ईर्ष्या मिट जाए । ओ  इंसान ! अपने आप को जान; समस्त ज्ञान वहीं केन्द्रीभूत होता है । बादल चाहें पदवियां और जागीरें बरसा दें, दौलत चाहे हमें ढ़ूँढ़े, लेकिन ज्ञान को तो हमें ही खोजना पड़ेगा ।
व्यक्ति जितना अधिक मूल्यों के प्रति आस्थावान होता है, उसके जीवन में उतने ही अधिक कष्ट और कठिनाइयाँ आती हैं । कष्ट और कठिनाइयाँ अग्निपरीक्षा का काम करते हैं । - मनोज भारती 

अनुभव और आनंद

व्यक्ति संसार के अनुभवों की भट्ठी में जल कर ही आनंद रूपी कुंदन को प्राप्त होता है । - मनोज भारती

संबंध

मानवीय संबंध कभी नहीं टूटते, हमेशा व्यक्ति की अपेक्षाएँ टूटती हैं । इसलिए संबंध टूटते दिखाई पड़ते हैं । -मनोज भारती

अहंकार

अहंकार मनुष्य की नकारात्मक शक्ति है । जिसका बीज हर मनुष्य में होता है । आयु बढ़ने के साथ-साथ यह बीज अंकुरित,पल्लवित होता हुआ विकसित होता है । पर जब अहंकार अपने शिखर पर होता है, तो मनुष्य अपने जीवन के निम्नतम स्तर पर होता है । 

स्त्री और पुरुष

कोई पुरुष कभी भी किसी स्त्री से नहीं जीत सकता, क्योंकि पुरुष का उद्-गम स्त्री से है, उसे अस्तित्व में लाने वाली स्त्री है और पुरुष स्वयं अस्तित्व से बड़ा नहीं हो सकता । -मनोज भारती

चमार राष्ट्रपति

लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति हुआ । उसका बाप एक गरीब चमार था । कौन सोचता था कि चमार के घर एक लड़का पैदा होगा, जो मुल्क में आगे खड़ा हो जाएगा ? अनेक-अनेक लोगों के मन को चोट पहुँची । एक चमार का लड़का राष्ट्रपति बन जाए । दूसरे जो धनी थे और सौभाग्यशाली घरों में पैदा हुए थे, वे पिछड़ रहे थे । जिस दिन सीनेट में पहला दिन लिंकन बोलने खड़ा हुआ, तो किसी एक प्रतिस्पर्धी ने, किसी महत्वाकांक्षी ने, जिसका क्रोध प्रबल रहा होगा, जो सह नहीं सका होगा, वह खड़ा हो गया । उसने कहा, "सुनों लिंकन, यह मत भूल जाना कि तुम राष्ट्रपति हो गए तो तुम एक चमार के लड़के नहीं हो । नशे में मत आ जाना । तुम्हारा बाप एक चमार था, यह खयाल रखना ।" सारे लोग हँसे, लोगों ने खिल्ली उड़ाई, लोगों को आनंद आया कि चमार का लड़का राष्ट्रपति हो गया था । चमार का लड़का कह कर उन्होंने उसकी प्रतिभा छीन ली ।फिर नीचे खड़ा कर दिया । लेकिन लिंकन की आँखें  खुशी के आँशुओं से भर गई । उसने हाथ जोड़ कर कहा कि मेरे स्वर्गीय पिता की तुमने स्मृति दिला दी, यह बहुत अच्छा किया । इस क्षण में मुझे खुद उनकी याद आनी चाहिए थी । लेकिन मैं तुमसे कहूँ, मैं

संसार और दुनिया

संसार शब्द कब दुनिया शब्द के अर्थ में व्यवहार में आने लगा, मालूम नहीं । संसार शब्द का अर्थ दुनिया शब्द से नितांत भिन्न है । संसार शब्द का मूल अर्थ है : सम्यक् सार । अर्थात सार तत्त्व की बात । लेकिन दुनिया शब्द का अर्थ है : जहां दु का राज है अर्थात जहां द्वैत और द्वंद्व है । शायद नकली गुरुओं द्वारा सात्विक सार तत्त्व की बात को बहुत बार बिना अनुभव के दोहराया गया, तो द्वैत में जीने वालों ने संसार और दुनिया में अंतर करना छोड़ दिया और संसार शब्द भी दुनिया का पर्याय बन कर रह गया । - मनोज भारती

प्रेम और प्रार्थना

हेनरी थोरो अमेरिका का एक बहुत बड़ा विचारक हुआ । वह मरने के करीब था । वह कभी चर्च में नहीं गया था । उसे कभी किसी ने प्रार्थना करते हुए नहीं देखा था । मरने का वक्त था, तो उसके गाँव का पादरी उससे मिलने गया । उसने सोचा यह मौका अच्छा है, मौत के वक्त आदमी घबड़ा जाता है । मौत के वक्त डर पैदा हो जाता है , क्योंकि अनजाना रास्ता है मृत्यु का । न मालूम क्या होगा ? उस समय भयभीत आदमी कुछ भी स्वीकार कर सकता है । मौत का शोषण धर्मगुरु बहुत दिनों से करते रहे हैं । इसलिए तो मंदिरों, मस्जिदों में बूढ़े लोग दिखाई पड़ते हैं । पादरी ने हेनरी थोरो से जाकर कहा, क्या तुमने अपने और परमात्मा के बीच शांति स्थापित कर ली है ? क्या तुम दोनों एक दूसरे के प्रति प्रेम से भर गए हो ? हेनरी थोरो मरने के करीब था । उसने आंखें खोली और कहा, "महाशय, मुझे याद नहीं पड़ता है कि मैं उससे कभी लड़ा भी हूँ । मेरा उससे कभी झगड़ा नहीं हुआ तो उसके साथ शांति स्थापित करने का सवाल कहाँ है ? जाओ, तुम शांति स्थापित करो, क्योंकि जिंदगी में तुम उससे लड़ते रहे हो । मुझे तो उसकी प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है । मेरी जिंदगी ही प्रार्थना थी