लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति हुआ । उसका बाप एक गरीब चमार था । कौन सोचता था कि चमार के घर एक लड़का पैदा होगा, जो मुल्क में आगे खड़ा हो जाएगा ? अनेक-अनेक लोगों के मन को चोट पहुँची । एक चमार का लड़का राष्ट्रपति बन जाए । दूसरे जो धनी थे और सौभाग्यशाली घरों में पैदा हुए थे, वे पिछड़ रहे थे । जिस दिन सीनेट में पहला दिन लिंकन बोलने खड़ा हुआ, तो किसी एक प्रतिस्पर्धी ने, किसी महत्वाकांक्षी ने, जिसका क्रोध प्रबल रहा होगा, जो सह नहीं सका होगा, वह खड़ा हो गया । उसने कहा, "सुनों लिंकन, यह मत भूल जाना कि तुम राष्ट्रपति हो गए तो तुम एक चमार के लड़के नहीं हो । नशे में मत आ जाना । तुम्हारा बाप एक चमार था, यह खयाल रखना ।" सारे लोग हँसे, लोगों ने खिल्ली उड़ाई, लोगों को आनंद आया कि चमार का लड़का राष्ट्रपति हो गया था । चमार का लड़का कह कर उन्होंने उसकी प्रतिभा छीन ली ।फिर नीचे खड़ा कर दिया । लेकिन लिंकन की आँखें खुशी के आँशुओं से भर गई । उसने हाथ जोड़ कर कहा कि मेरे स्वर्गीय पिता की तुमने स्मृति दिला दी, यह बहुत अच्छा किया । इस क्षण में मुझे खुद उनकी याद आनी चाहिए थी । लेकिन मैं तुमसे कहूँ, मैं
ਭੱਠੀ 'ਚ ਜਲਕੇ ਹੀ
जवाब देंहटाएंਕੁੰਦਨ ਸੁੱਖ ਪਾਵੇਂਗਾ
ਸੇਕ ਤੋਂ ਡਰਕੇ
ਜੇ ਤੂੰ ਕੋਲ਼ ਹੀ ਨਾ ਆਵੇਂਗਾ
ਜੀਵਨ ਦੇ ਨਿੱਘ ਤੋਂ ਵਾਝਾ ਰਹਿ ਜਾਵੇਂਗਾ.....
भट्ठी में जलकर ही
कुंदन-सुख पाएगा
जलने से डर से
अगर पास न आएगा
जीवन का उष्ण कैसा तू पाएगा ?
उम्मीद करता हूँ कि यह ओशो ने नहीं कहा था.
जवाब देंहटाएं@ Bhushan जी
जवाब देंहटाएं@ उम्मीद करता हूँ कि यह ओशो ने नहीं कहा था.
आपको स्पष्ट करना चाहिये कि क्या आप इस विचार को ओशो दर्शन के विपरीत मानते हैं?
आग में तप कर ही सोना कुन्दन बनता है! यह मुहावरा ही इस विचार की पुरातनता का परिचायक है!
अज्ञेय ने इसे यू कहा है कि " दुख हमें माझंता हैं" (नदी के द्वीप, पुस्तक से)
@ भूषण जी
जवाब देंहटाएंबचपन में ज्यामिति में प्रमेय के साथ उपप्रमेय पढाया जाता था, जो प्रमेय का विस्तार होता था… ओशो ने कई ऐसी बातें कही हैं जिनको अगर विस्तार में देखें तो अनगिनत ऐसे उपप्रमेय दिखाई देंगे... ज्यामिति भले ही गोले को एक वृत्त के रूप में देखती है किंतु ओशो के उपप्रमेय इस वृत्त को एक शून्य मानता है जिसकी परिधि में दुनिया का समस्त ज्ञान सन्निहित है!!
भारत भूषण जी, आपकी टिप्पणी आशय चाहती है ।
जवाब देंहटाएंआशा है स्पष्ट करेंगे ?
कई बार हम कुछ शब्दों के आधार पर अपनी टिप्पणी देते हैं. मेरी उपर्युक्त टिप्पणी इसी प्रकार की थी. भारतीय तत्त्व मनीषा में संसार रूपी अग्नि से बचने का प्रबंध किया जाता है. उसमें तपने और आनंद प्राप्त करके कुंदन बनने का भाव विवादी स्वर ही हो सकता है. ओशो तत्त्व ज्ञान के हिमायती हैं. ब्लॉग पर ओशो की छवि देख कर मैंने स्वाभाविक ही टिप्पणी की थी.
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