व्यक्ति जितना अधिक मूल्यों के प्रति आस्थावान होता है, उसके जीवन में उतने ही अधिक कष्ट और कठिनाइयाँ आती हैं । कष्ट और कठिनाइयाँ अग्निपरीक्षा का काम करते हैं । - मनोज भारती
राष्ट्रभाषा, राजभाषा या संपर्कभाषा हिंदी
आज हिंदी को बहुत से लोग राष्ट्रभाषा के रूप में देखते हैं । कुछ इसे राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित देखना चाहते हैं । जबकि कुछ का मानना है कि हिंदी संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो रही है । आइए हम हिंदी के इन विभिन्न रूपों को विधिवत समझ लें, ताकि हमारे मन-मस्तिष्क में स्पष्टता आ जाए । राष्ट्रभाषा से अभिप्राय: है किसी राष्ट्र की सर्वमान्य भाषा । क्या हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है ? यद्यपि हिंदी का व्यवहार संपूर्ण भारतवर्ष में होता है,लेकिन हिंदी भाषा को भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं कहा गया है । चूँकि भारतवर्ष सांस्कृतिक, भौगोलिक और भाषाई दृष्टि से विविधताओं का देश है । इस राष्ट्र में किसी एक भाषा का बहुमत से सर्वमान्य होना निश्चित नहीं है । इसलिए भारतीय संविधान में देश की चुनिंदा भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा है । शुरु में इनकी संख्या 16 थी , जो आज बढ़ कर 22 हो गई हैं । ये सब भाषाएँ भारत की अधिकृत भाषाएँ हैं, जिनमें भारत देश की सरकारों का काम होता है । भारतीय मुद्रा नोट पर 16 भाषाओं में नोट का मूल्य अंकित रहता है और भारत सरकार इन सभी भाषाओं के विकास के लिए संविधान अनुसा
हमरे हिसाब से मूल्यों के प्रति आस्थावान व्यक्ति को रास्ते में आने वाले कष्ट दिखाई ही नहीं देते हैं.. वह तो राह पकड़ तू एक चला चल का जाप करता पीड़ा में आनंद की अनुभूति लिए ऐकला चलो रे के दर्शन पर चलता ही जाता है.
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसही हैं...
जवाब देंहटाएंसही कहा मनोज जी आपने. बिहारी ब्लागर की बात सोलह आने सच है. एक बार अपने मूल्यों से लगाव हो जाए. फिर दुनियां में कुछ भी मूल्यवान नहीं बचता.
जवाब देंहटाएं