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पुस्तकें

पुस्तकें आप की अक्षय जीवन संगिनी हैं।यदि आपके पास पुस्तकें हैं तो आपके पास बुद्धिमता,हर्ष,विद्वता,चतुरता,विवेक,ज्ञान और तत्त्वज्ञान का झरना है।इनके द्वारा आप शताब्दियों के सर्वोत्तम विचारकों का सत्संग कर सकते हैं और जब भी आपकी इच्छा हो इनसे लाभ उठा सकते हैं। पुस्तकें मन को आलोकित करती हैं,प्राण को सबल बनाती हैं,क्लांत शरीर को उठाती हैं और जीवन भर साथ बनी रहती हैं।-टी.पी.डून्न

मोक्ष

धर्म के मार्ग पर चलते हुए काम और अर्थ की पूर्ति करते हुए जीवन के परम ध्येय को पा लेने का नाम है-मोक्ष। यही वह लक्ष्य है जिसकी प्राप्ति भारतीय चिंतन का आधार है। चार्वाक दर्शन को छोड़कर सभी भारतीय दर्शन मोक्ष को जीवन का नि:श्रेयस मानते हैं। पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष का आशय किसी दूसरे लोक या स्वर्ग लोक को पाना नहीं है,बल्कि सद्ज्ञान से सांसारिक बंधनों से छूट कर आत्मा अथवा स्वयं के वास्तविक स्वरूप को पहचानना और उस स्वरूप में स्थित होकर ब्रह्मानंद की अनुभूति प्राप्त करना है। इसे बुद्ध निर्वाण कहते हैं और महावीर कैवल्य। शिव गीता(शिव-सूत्र) में मोक्ष की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मोक्ष किसी स्थान पर रखी गई वस्तु नहीं जिसे पाना है और न ही गांव-गांव घूमकर ही इसे प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुत: जब हृदय की अज्ञान ग्रंथि का नाश हो जाता है,तब प्राप्त हुई स्थिति मोक्ष है। अद्वैतवादियों(वेदांत) के अनुसार मोक्ष का अर्थ ब्रह्म के आनंद की (ब्रह्मानंद) प्राप्ति से है। मुक्ति न तो उत्पन्न होती है और न ही पहले से अप्राप्त है। यह तो प्राप्त की ही प्राप्ति है। मुक्ति शाश्वत सत्य का अनुभव है,