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संत रैदास

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संतों में ध्रुव तारा : संत रैदास  संत रैदास मध्यकाल के प्रमुख संत हैं। ओशो संत रैदास के संबंध में कहते हैं, भारत का आकाश संतों के सितारों से भरा है। अनंत-अनंत सितारे हैं,यद्यपि ज्योति सबकी एक है। संत रैदास उन सब सितारों में ध्रुवतारा हैं- इसलिए कि शूद्र के घर पैदा होकर भी काशी के पंडितों को मजबूर कर दिया स्वीकार करने को। महावीर का उल्लेख नहीं किया ब्राह्मणों ने अपने शास्त्रों में। बुद्ध की जड़ें काट डाली,बुद्ध के विचार को उखाड़ फेंका। लेकिन रैदास में कुछ बात है कि रैदास को नहीं उखाड़ सके और रैदास को स्वीकार करना पड़ा। निश्चित ही रैदास भारत के आध्यात्मिक आकाश में ध्रुवतारे की भांति हैं। क्योंकि चमार के घर में पैदा होकर भी,सब अभावों और असुविधाओं के होते हुए भी वे उस ब्राह्मणत्व को प्राप्त कर सके, उस ब्रह्म के साक्षात्कार कर सके जिसके लिए मानव जन्मों-जन्मों से प्यासा है। संत रैदास के गुरु रामानंद हैं। संत कबीर रैदास के गुरुभाई हैं। कबीर और रैदास दोनों के गुरु रामानंद हैं और मीरा जैसी परम अनुभूति को प्राप्त अद्भुत नारी संत रैदास की शिष्या हैं। रैदास का मार्ग भक्ति का है,

हरिवंश राय बच्चन की कलम से कुछ जीवन सत्य

बुद्धि से जो बली होता है,प्राय: शरीर से दुर्बल होता है। अनुभूति का सत्य वस्तुगत सत्य से कहीं अधिक सजीव होता है। स्त्री के आंसुओं के समक्ष पुरुष बेबस हो जाता है। जो मर्द कमाता नहीं वह औरत पर मुश्किल से हावी हो पाता है। नारी तो मां बनने के लिए ही बनी है। उसके स्वप्नों में कोई इससे अधिक मधुर,कोमल और सबल नहीं होता। मां बनकर ही वह पूर्ण होती है; न बन सकी तो इस अभाव के लिए वह अपने को धिक्कारती रहती है। नारी और नृपति को पलटते देर नहीं लगती। नारी कितनी दूरंदेशी,कितनी कल्पनाशील और कितनी व्यवहारिक होती है। जीवन में कुछ चीजें कोमल तंतुओं से बंधी रहने पर ही संगठित रहती हैं। जब उन्हें अधिकार की लौह शृंखला से बांधने का प्रयत्न किया जाता है,तब वे बिखर जाती हैं। पुरुष के ऐसे काम-धंधे को नारी का समर्थन कम ही मिलता है जिससे चार पैसे की आमदनी न हो। पुरुष भावना पर जी सकता है,नारी नहीं। जिंदगी और औरत उसी आदमी का सिक्का मानती हैं जो उसे झिंझोड़कर फेंक दे। जीवन में ज्यादातर टूटे हुए लोग वे हैं जो अपने स्वभाव और कार्य में साम्य नहीं स्थापित कर पाते। प्रकृति अपने साथ चलने वालों को धोखा नहीं देती।