संबंध

मानवीय संबंध कभी नहीं टूटते, हमेशा व्यक्ति की अपेक्षाएँ टूटती हैं । इसलिए संबंध टूटते दिखाई पड़ते हैं । -मनोज भारती

टिप्पणियाँ

  1. ऐसा नहीं लगता कि अपेक्षाओं का नाम ही संबंध है. इन्हें हम अनुकूल भावनाएँ कहें तो भी ठीक होगा.

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  2. उत्तम विचार।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  3. अपेक्षा रहित सम्बंध ही स्वर्गिक होते हैं...

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