अमीर खुसरो की चतुराई
एक बार गर्मियों के दिनों में अमीर खुसरो किसी गाँव की यात्रा पर निकले थे । रास्ते में उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी । वे पानी की खोज में एक पनघट पर जा पहुँचे । वहां चार पनिहारिनें पानी भर रही थी । खुसरों ने उनसे पानी पिलाने का अनुरोध किया । उनमें से एक पनिहारिन खुसरो को पहचानती थी । उसने अपनी तीनों सहेलियों को बता दिया कि पहेलियाँ बनाने वाले यही अमीर खुसरों हैं । विदित है कि अमीर खुसरो अपनी पहेलियों,मुकरियों तथा दो-सखुनों के लिए जगत प्रसिद्ध हैं । फिर क्या था ? चारों पनिहारिनों में से एक ने कहा मुझे खीर पर कविता सुनाओ, तब पानी पिलाऊंगी । इसी तरह से दूसरी पनिहारिन ने चरखा, तीसरी ने ढोल और चौथी ने कुत्ते पर कविता सुनाने के लिए कहा । खुसरो बेचारे प्यास से व्याकुल थे । पर खुसरो की चतुराई देखिए कि उन्होंने एक ही छंद में उन सबकी इच्छानुसार कविता गढ़ कर सुना दी -
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जला ।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा ।।
ला पानी पीला ।
यह सुन कर पनिहारिनों की खुशी का ठीकाना न रहा । उन्होंने खुश होकर खुसरो को न केवल पानी पिलाया, बल्कि अपने घर ले जाकर भोजन भी करवाया ।
रोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंअमीर खुसरो की हिंदवी कविताएँ शोध का विषय हो सकती हैं. मैं ने भी धृष्टता की है उनकी फारसी हिन्दवी शायरी को उर्दू में तर्जुमा करने की... कभी अवसर मिला तो सबके सामने हमारे ब्लॉग पर होगी... अच्छा लगा उनके बारे में आपसे सुनकर, हमारे ब्लॉग पर प्रकाशित रचना को अगे बढाती हुई पोस्ट... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, शानदार और रोचक पोस्ट! मुझे बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंखीर पकाई जतन से, चरखा दिया जला ।
जवाब देंहटाएंआया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा ।।
वाह...वाह....बहुत खूब ....!!
Iska spashtikaran nhi hai
हटाएंजब्बब नहीं है खुसरो जी के बारे मे |
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार बोला
खुसरो की कविता बाहरी आक्रमणों से बेपरवाह भारत देश की गाथा है
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