पढ़ना और समझना
जब मैं कुछ पढ़ता हूँ
और उससे अर्थ ग्रहण करता हूँ
और जब आप कुछ पढ़ते हैं
और उसका अर्थ ग्रहण करते हैं
यह जरूरी नहीं कि हमने जो पढ़ा
और उसका जो अर्थ ग्रहण किया
वह वही है जो कि लेखक का रहा होगा
नहीं, बहुत कम संभावनाएँ हैं
कि कोई लेखक अपना वास्तविक संदेश
लोगों तक संप्रेषित कर पाए ।
यही कारण है कि बहुत सी पुस्तकों की
बहुत सी टीकाएँ की जाती हैं
व्यक्ति किसी बात से
वही अर्थ लेता है जो वह समझता है
और वह वही समझता है जो कि वह जीता है
उसका जीवन दृष्टिकोण ही चीजों को अर्थ देता है
बहुत से लोग जो वातावरण से प्रदूषित हैं
उनका स्वयं का कोई दृष्टिकोण नहीं होता
क्योंकि उनका स्वयं का कोई जीवन ही नहीं होता .
और उससे अर्थ ग्रहण करता हूँ
और जब आप कुछ पढ़ते हैं
और उसका अर्थ ग्रहण करते हैं
यह जरूरी नहीं कि हमने जो पढ़ा
और उसका जो अर्थ ग्रहण किया
वह वही है जो कि लेखक का रहा होगा
नहीं, बहुत कम संभावनाएँ हैं
कि कोई लेखक अपना वास्तविक संदेश
लोगों तक संप्रेषित कर पाए ।
यही कारण है कि बहुत सी पुस्तकों की
बहुत सी टीकाएँ की जाती हैं
व्यक्ति किसी बात से
वही अर्थ लेता है जो वह समझता है
और वह वही समझता है जो कि वह जीता है
उसका जीवन दृष्टिकोण ही चीजों को अर्थ देता है
बहुत से लोग जो वातावरण से प्रदूषित हैं
उनका स्वयं का कोई दृष्टिकोण नहीं होता
क्योंकि उनका स्वयं का कोई जीवन ही नहीं होता .
बचपन से जो गाँठ थी मन में आप ने उसमें एक और गिरह लगा दी... कई बार ख़ुद से पूछता था कि जो मैं पढकर समझ रहा हूँ, वह सही है या जो मास्टर ने समझाया वो सही है...कई बार एक कविता का अर्थ और व्याख्या लिखने में मेरे नम्बर काट लिए गए, क्योंकि मेरे भाव उन भावों से मेल नहीं खाते थे जो क्लास में पढाया गया या कुंजिकाओं में लिखा गया..जबकि मैं ग़लत हूँ ऐसा भी नहीं कहा किसी ने..आज आप ने यह सोचने पर विवश कर दिया कि मैं तब भी ग़लत था, जो समझता था कि मैंने कोई गलती नहीं की...जबकि सच यही था कि कवि ने तो कविता किसी और भाव से लिखी हो..
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