पशु और बुद्धत्व
एक झेन कथा :
शोदाई एरो जो ध्यान की शिक्षा ग्रहण करना चाहता था, ध्यान सीखना चाहता था । इस प्रयोजन हेतु वह बासो के पास आया ।
बासो ने एरो से पूछा, "तुम्हारा आना किस लिए हुआ है ?"
एरो ने कहा, "मुझे ज्ञान चाहिए, मैं ध्यान सीखना चाहता हूँ और बुद्धत्व की प्राप्ति चाहता हूँ ।"
"बुद्धत्व की प्राप्ति असंभव है । ऐसे ज्ञान का संबंध शैतान से है । " बासो का जवाब था ।
एरो बासो की बात नहीं समझा । तब बासो ने उसे सेकितो नाम के एक अन्य झेन गुरु के पास भेज दिया ।
एरो ने सेकितो के पास जाकर पूछा, " बुद्धत्व क्या है ? "
सेकितो ने कहा, "तुममें बुद्धत्व के लक्षण नहीं हैं । "
एरो ने पूछा, "क्या पशु बुद्ध हो सकते हैं ?"
सेकितो ने कहा,"हाँ, वे हैं ।"
एरो ने स्वाभाविक जिज्ञासा से प्रश्न किया - "फिर मैं बुद्ध क्यों नहीं हो सकता ?"
सेकितो ने जवाब दिया,"क्योंकि तुम पूछते हो "
झेन गुरु सेकितो के उक्त कथन से एरो की उलझन मिट गई और उसे ज्ञान हो गया ।
एरो ने स्वाभाविक जिज्ञासा से प्रश्न किया - "फिर मैं बुद्ध क्यों नहीं हो सकता ?"
जवाब देंहटाएंसेकितो ने जवाब दिया,"क्योंकि तुम पूछते हो
bahut hi behtrin lagi ye nanhi rachna
मन बडा हरामी है. इस कथा को सुनकर कह्ता है, "बुद्धत्व क्या होता है पूछना नहीं है !."
जवाब देंहटाएंहा... हा... हा...
मौन हो जाना स्वाभाविक है शायद!
और मौन को पुकारना छल !