नैतिक साहस
ओशो उन दिनों जबलपुर सागर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक थे । एक दिन वे नीतिशास्त्र पढ़ा रहे थे । ऐसा कभी नहीं होता था कि ओशो कक्षा में व्याख्यान दे रहे हों और कोई छात्र किसी दूसरे छात्र से बातों में लगा हो । लेकिन उस दिन सामने की बैंच पर बैठी दो छात्राएँ आपस में बाते कर रही थी । ओशो का ध्यान जब इन छात्राओं की ओर गया तो ओशो ने व्याख्यान बीच में रोक कर कहा कि अब हम विराम लेते हैं और सामने बैठी छात्राओं की बातें सुनते हैं ; क्योंकि मेरे व्याख्यान से भी अधिक महत्वपूर्ण इनकी बातें हैं, हमें इन्हें सुनना चाहिए ।
तब ओशो ने छात्राओं को इंगित कर कहा कि जिस विषय पर तुम बात कर रही हो, वह हम सबके साथ बाँटों । ताकि हम भी उससे लाभान्वित हों । लेकिन ओशो की बात सुन कर छात्राएँ चुप बैठी रही ।
तब ओशो ने छात्राओं को कहा कि नीतिशास्त्र पढ़ती हो और इतना भी नैतिक साहस नहीं जुटा पा रही कि कुछ देर पहले जो बात तुम कर रही थी, उसे सभी के सामने कहने का साहस कर सको ।
इस घटना के बाद उन छात्राओं ने कक्षा में कभी व्याख्यान के समय आपस में बात न की ।
तब ओशो ने छात्राओं को इंगित कर कहा कि जिस विषय पर तुम बात कर रही हो, वह हम सबके साथ बाँटों । ताकि हम भी उससे लाभान्वित हों । लेकिन ओशो की बात सुन कर छात्राएँ चुप बैठी रही ।
तब ओशो ने छात्राओं को कहा कि नीतिशास्त्र पढ़ती हो और इतना भी नैतिक साहस नहीं जुटा पा रही कि कुछ देर पहले जो बात तुम कर रही थी, उसे सभी के सामने कहने का साहस कर सको ।
इस घटना के बाद उन छात्राओं ने कक्षा में कभी व्याख्यान के समय आपस में बात न की ।
अच्छा सबक सीखाया ओशो ने.
जवाब देंहटाएंआज भी ओशो की वो क्लास चल रही है.
जवाब देंहटाएंहम प्रशन नहीं करते व्यव्स्था पर..??. खुद पर..??. उठ कर खडे होना और अपनी बात को कहने का सहास भी खो गया है.....
सच है, पढ़ लेना आसन है लेकिन उसे जीवन में अपनाना हर किसी के बूते की बात नहीं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दृष्टान्त.....