ओशो की डायरी से:5:
यह सत्य है कि मनुष्य अब पशु नहीं है;लेकिन क्या यह भी सत्य है कि मनुष्य,मनुष्य हो गया है? पशु होना अतीत की घटना हो गई है पर मनुष्य होना अभी भी भविष्य की संभावना है।शायद हम मध्य में हैं और यही हमारी पीड़ा है,यही हमारा तनाव है,यही हमारा संताप है। जो प्रयास करते हैं और स्वयं के इस पीड़ा-अस्तित्व से असंतुष्ट होते हैं,वे ही मनुष्य हो पाते हैं।मनुष्यता मिली हुई नहीं है,उसे हमें स्वयं ही स्वयं में जन्म देना होता है। लेकिन मनुष्य होने के लिए यह आवश्यक है कि हम पशु न होने को ही मनुष्य होना न समझ लें और जो हैं उससे तुष्ट न हो जावें। स्वयं से गहरा और तीव्र असंतोष ही विकास बनता है। मैं तथाकथित शिक्षा से कितना पीड़ित हुआ हूं,कैसे बताऊं? सिखाया हुआ ज्ञान,विचार की शक्ति को तो नष्ट ही कर देता है। विचारों की भीड़ में विचार की शक्ति तो दब ही जाती है। स्मृति प्रशिक्षित हो जाती है और ज्ञान के स्रोत अविकसित ही रह जाते हैं। फिर यह प्रशिक्षित स्मृति ही ज्ञान का भ्रम देने लगती है। इस तथाकथित शिक्षा में शिक्षित व्यक्ति को नए सिरे से ही विचार करना सीखना होता है। उसे फिर से अशिक्षित होना पड़ता है। यही मुझे भी कर...