शून्यता
( ध्यानमय जीवन के लिए अब तक हमने पिछली पोस्टों में सरलता,सजगता की बात की है। आज की इस पोस्ट में प्रस्तुत है ध्यानमय जीवन का तीसरा सूत्र: शून्यता) तीसरा सूत्र है: शून्यता। जितना शून्य होंगे उतनी सजगता गहरी होगी। सरलता उत्पन्न होती है सजगता से और सजगता उत्पन्न होती है शून्यता से। शून्यता चरम बिंदु है। शून्यता साधना का केंद्र बिंदु है। शून्य हो जाएं। शून्य होने का मतलब है जो हो रहा है चारों तरफ, उसके प्रति मरना सीखें। एक छोटी सी कहानी कहूं तो शायद समझ आ जाए। जापान में एक संन्यासी हुआ। एक ऐसा दरिद्र भिखारी,जो टोकियो राजधानी में एक नीम के झाड़ के नीचे पड़ा रहता था। वर्ष आए और गए,वह वहीं पड़ा रहा। लाखों हजारों लोग उसे मानते थे और उसे श्रद्धा देते थे। स्वयं बादशाह भी उसे श्रद्धा देता था और उसका आदर करता था। एक दिन बादशाह आया और उसके चरण छुए और कहा कि कृपा करें,मेरे महल में चलें। यहां पड़े रहने से क्या? बरसात भी है,शरीर आपका वृद्ध हो गया है,धूप आती है,तकलीफ होती है,सर्दी आती है। मुझ पर कृपा करें और तुरंत मेरे महल में चलें। साधु ने अपनी चटाई लपेटी और खड़...