अथर्ववेद

अंगिरा-वंशीय अथर्वा ऋषि के नाम पर इसका अथर्ववेद  नाम पड़ा।इसके नामकरण के संबंध में गोपथ ब्राह्मण में एक कथा आती है।कथा के अनुसार,ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति के लिए घोर तपस्या की।तप के प्रभाव से उनके तप:पूत शरीर से तेजस्वरूप दो जल धाराओं का उद्-भव हुआ, जिनमें से एक धारा से अथर्वन तथा दूसरी से अंगिरा उत्पन्न हुए।इन्हीं से अथर्वागिरसों की उत्पत्ति हुई।इनके वंशजों को जो मंत्र दृष्ट हुए उन्हें अथर्ववेद,मृग्वंगिरसवेद अथवा अर्वांगिरसवेद कहा गया।

अथर्व का शाब्दिक अर्थ है :गति रहित। थर्व शब्द चंचलता व गति का द्योतक है जबकि अथर्व से गति रहित,निश्चलता,एकाग्रता आदि का तात्पर्य है।इसी लिए कहा गया है : थर्व गति कर्मा न थर्व इति अथर्वा।अथर्व वेद में मानव शरीर के अंगों,शारीरिक रोगों,राजधर्म,समाज-व्यवस्था,अध्यात्मवाद और प्रकृति वर्णन का विस्तृत व व्यवहारिक ज्ञान भरा पड़ा है।

अथर्ववेद में वर्णित मंत्र यज्ञ से संबंधित न होकर यज्ञ में उत्पन्न होने वाले विघ्नों के निवारण हेतु यज्ञ संरक्षक ब्रह्म के निमित्त मंत्रों का संग्रह है।इस संहिता में मारण,मोहन,उच्चाटन आदि तंत्र-क्रियाओं का विशेष वर्णन है।इसमें भूत-प्रेतों से बचने के मंत्र,प्रयोग और विधियाँ हैं। यहां तक कि सुख-सम्पत्ति,व्यापार,जुए आदि की सफलता के लिए प्रार्थना और मंत्र हैं।आयुर्वेद संबंधी अनेक बातें इसमें दी गई हैं, इसी कारण आयुर्वेद इसका उपवेद माना जाता है।

इसके ऋत्विक ब्रह्मा,देवता सोम तथा मुख्य आचार्य सुमन्तु हैं।अथर्ववेद की कुल नौ शाखाएँ हैं -1.पिप्पलाद2.शौनक 3.मौदमहाभाष्य 4.स्तौद 5.जाजल  6.जलद 7.ब्रह्मवेद 8.देवदर्श तथा 9. चारण वैद्य। इन नौ शाखाओं में वर्तमान में प्रथम दो शाखाएँ पिप्पलाद तथा शौनक ही उपलब्ध हैं।इनमें भी शौनक शाखा ही प्रसिद्ध है।पिप्पलाद शाखा का प्रश्नोपनिषद ग्रंथ एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ है, इसके विपरीत्त शौनक शाखा का शौनक संहिता, गोपथ ब्राह्मण एवं दो उपनिषद और दो सूत्र ग्रंथ भी उपलब्ध हैं।

संपूर्ण अथर्ववेद संहिता 20 कांडों में विभाजित है।जिनमें 34 प्रपाठक, 111 अनुवाक,739 सूक्त तथा 5849 मंत्र या ऋचाएँ हैं।इनमें से लगभग 1200 ऋचाएँ ऋग्वेद से ली गई हैं।अथर्ववेद गद्य-पद्य मिश्रित है। छठा भाग गद्य में है।

टिप्पणियाँ

  1. देर से आया आपके ब्लॉग पर। लेकिन चारों वेदों की जानकारी एक साथ मिल गई। सांस्कृतिक विरासतों की जानकारी रखना कितना अच्छा लगता है। जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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  2. बहुत ही बढ़िया जानकारी दी आपने । बहुत कुछ नया जाना । आभार।

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  3. अथर्ववेद के बारे में इतनी जानकारी यहाँ प्रस्तुत करने का आभार। स्पष्ट है कि वेदों के ऋषियों ने परलोक ही नहीं इहलोक को भी सुन्दर बनाने का प्रयास किया।

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