पुस्तक समीक्षा : 'खजाना' कहानी संग्रह
मनोज
कुमार पांडेय की सद्यःप्रकाशित पुस्तक ‘ख़जाना’ पढ़ी। यह कहानी
संग्रह है जिसमें कुल आठ कहानियां संकलित है,जो इस रूप में प्रकाशित होने से पूर्व तद्भव,पक्षधर,रचना समय,अभिनव कदम,कादंबिनी और पल-प्रतिपल पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। संग्रह की तीन लंबी कहानियां हैं। ये हैं-चोरी,घंटा,मोह। मोह सबसे लंबी कहानी है। अन्य
अपेक्षाकृत छोटी कहानियां हैं।

समाज
में विभिन्न चरित्र कैसे-कैसे विकास पाते हैं,इसका एक सजग वृत्त प्रस्तुत किया गया
है। इन कहानियों में सूक्ष्म विचार को प्रस्तुत करना कहानीकार की कुशलता है। यह
मनोविश्लेषण नहीं है,पर लोगों के मनों में पसरी विभिन्न इच्छाओं,कुइच्छाओं का खाका
जरूर प्रस्तुत करता है। इस प्रस्तुतीकरण में संवेदनाएं अपनी गहराई के साथ उठने की
कोशिश करती हैं। ये पाठक के कुतूहल की लोकरंजना नहीं करती बल्कि पाठक को विचार के उस धरातल
पर ले जाकर छोड़ देती हैं,जहां उसे स्वयं निर्णय करना है कि वह निरंतर जटिल होते इस
समाज में स्वयं को कहां देखना चाहता है।
लेखक
ने अपने जीवन के अतीत में जो भोगा है या अनुभव किया है, उसको कहानी में नए औज़ारों
के साथ एक नए शिल्प में बांधा है। यह नया शिल्प विचार को गूंथने में और उसे मूर्त
रूप देने में सफल हुआ है। उनकी आत्मकथात्मक शैली आत्ममुग्धता नहीं,बल्कि समाज के
कुरूप चेहरे को उजागर करने का साधन बनी है,जो लोगों के मनों में गहरी जड़े जमाए हुए
है। उसमें लोभ है। लालच है। मोह है। चोरी है। समलैंगिकता है। टीस है। समाज की कथित मान्यताएं हैं। वे इन सबका पोस्टमार्टम
करने के लिए कहानी और इसके औजारों को गढ़ते हैं। लोभ व लालच को समझने का प्रयास
करते हैं,पर इन्हें दूर कर देने का दंभ नहीं भरते। व्यक्ति के शक-शुबहों के बीच भी
मोह किस तरह उसे अपनी गिरफ़्त में जकड़े रहता है, इसका पोस्टमार्टम वे सफलतापूर्वक
करते हैं।
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मनोज कुमार पांडेय |
मानव
का इतिहास उसके उठने गिरने की अनेक कथाओं,पुरा-कथाओं से अटा पड़ा है। उसमें विकास
और संघटन भी है और विघटन भी। इन कहानियों में मानवीय विकास की पर्ते भी हैं और
विघटन की विभिषिका भी। कहानी को इस तरह बढ़ाते हैं कि उसमें संघटन और विकास के साथ
विघटन के तत्व भी अपनी तमाम विद्रूपताओं,कुरूपताओं के साथ चले आएं। जब पाठक का
कुतूहल चरम पर होता है,और वह एक निष्पत्ति ,एक अंत, दुखद या सुखद पाना चाहता है; तभी
लेखक पाठक को अकेला छोड़ दूर जा खड़ा होता है। वह बहुत बार क्रुद्ध होता है और बहुत
बार विरोध में खड़ा होता है पर कोई निर्णय या समाधान नहीं देता। शायद,जीवन ऐसा ही
है, यहां हम पक्ष विपक्ष में खड़े तो हो सकते हैं पर कोई अंतिम समाधान नहीं दे
सकते।
'चोरी'
कहानी में लेखक चोरी के कारणों की सूक्ष्म पड़ताल करता है और पाता है कि यहां हर
कोई किसी न किसी प्रकार से चोरी की प्रवृत्ति से ग्रसित है,इसमें उसके प्रिय लेखक
भी अछूते नहीं हैं।
'टीस'
कहानी में गांव के स्कूल मास्टर की मनोवृत्ति से एक बालक के मन में उपजी ‘टीस’ का
वर्णन है।
‘मदीना’
कहानी में लेखक ने अपने प्रकृति प्रेम के कारण जीवन में भोगे संतापों का वर्णन किया
है।
‘ख़जाना’
कहानी में मानवीय लोभ व लोलुपता का आख्यान है।
‘कष्ट’
आदमी की इच्छा पूर्ति में बाधक बने तत्वों को नग्नता से देखने का प्रयास है।
‘अशुभ’
कहानी पढ़े-लिखे व्यक्ति में शकुन-अपशकुन की जकड़न को दर्शाती हैं।
‘घंटा’
कहानी में पुरातन रूपक के माध्यम से आधुनिक राजनीति के दोगलेपन और सत्ता के लिए हर
तरह की घेराबंदी का खुलासा है।
‘मोह’
कहानी में व्यक्ति में पनपे विभिन्न शक-शुबहों का वर्णन है। शक-शुबह किस प्रकार समाज में आगे से आगे जड़े जमाए रहते हैं और आदमी इनके बस में क्या-क्या कर्म,कुकर्म के जाल बुनता है।
कहानीकार
की भाषा साधारण है। आम जनजीवन में प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। ग्रामीण
पृष्ठ-भूमि के बहुत से शब्द फिर से ताजा हो गए हैं। वाक्यों का गठन सरल है।
छोटे-छोटे वाक्यों में बात कही गई है। जिससे भाषा सरल और स्पष्ट हो गई है, जो
अपने उद्देश्य पूर्ति में सफल रही है। लंबी कहानियों में उप-शीर्षक सार्थक और शिल्प
को गढ़ने में सहायक हुए हैं।
बहुत बहुत आभार मनोज जी। आपने इन कहानियों को जो स्नेह दिया है उसके लिए मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ। एक यह भी बात महत्वपूर्ण है कि आपने कहानियों की जमीन को भी परखने की सुंदर कोशिश की है। बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुलझी हुई समालोचना..
जवाब देंहटाएंआज कुछ लिखा जाये...
जवाब देंहटाएंअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अन्नत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
धन्यवाद !!! आपकी इस पहल व प्रेरणा के लिए!
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