मोक्ष
धर्म के मार्ग पर चलते हुए काम और अर्थ की पूर्ति करते हुए जीवन के परम ध्येय को पा लेने का नाम है-मोक्ष। यही वह लक्ष्य है जिसकी प्राप्ति भारतीय चिंतन का आधार है। चार्वाक दर्शन को छोड़कर सभी भारतीय दर्शन मोक्ष को जीवन का नि:श्रेयस मानते हैं। पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष का आशय किसी दूसरे लोक या स्वर्ग लोक को पाना नहीं है,बल्कि सद्ज्ञान से सांसारिक बंधनों से छूट कर आत्मा अथवा स्वयं के वास्तविक स्वरूप को पहचानना और उस स्वरूप में स्थित होकर ब्रह्मानंद की अनुभूति प्राप्त करना है। इसे बुद्ध निर्वाण कहते हैं और महावीर कैवल्य।
शिव गीता(शिव-सूत्र) में मोक्ष की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मोक्ष किसी स्थान पर रखी गई वस्तु नहीं जिसे पाना है और न ही गांव-गांव घूमकर ही इसे प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुत: जब हृदय की अज्ञान ग्रंथि का नाश हो जाता है,तब प्राप्त हुई स्थिति मोक्ष है।
अद्वैतवादियों(वेदांत) के अनुसार मोक्ष का अर्थ ब्रह्म के आनंद की (ब्रह्मानंद) प्राप्ति से है। मुक्ति न तो उत्पन्न होती है और न ही पहले से अप्राप्त है। यह तो प्राप्त की ही प्राप्ति है। मुक्ति शाश्वत सत्य का अनुभव है, उसका साक्षात अनुभव ही मुक्ति है। मोक्ष की प्राप्ति की उपमा वेदांती इस प्रकार देते हैं कि जैसे किसी के गले में पहले से ही हार है,परंतु वह इस बात को भूलकर इधर-उधर ढ़ूंढ़ता फिरता है, लेकिन अंतत: जब उसकी दृष्टि अपनी ओर जाती है तो हार मिल जाता है। हार का साक्षात अनुभव उसे होता है, उसी तरह मुमुक्षु को मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वयं की ओर,स्वयं के अंतर में देखना होता है। इस प्रकार स्वयं से अज्ञान का आवरण दूर कर देना ही मोक्ष है।
मुण्डकोपनिषद के अनुसार पूर्ण आत्म-ज्ञान जब तथा जिस स्थान पर होगा,उसी स्थान पर,उसी समय मोक्ष समझना चाहिए। मोक्ष आत्मा की मूल शुद्ध दशा है। गीता में उल्लेख है कि बाह्य सुख-दुखों से ऊपर उठकर जो अंतर्मुखी हो अंत:करण में स्थित हो जाए,जो अपने ही में विश्राम पाने लगे और ऐसे ही जिसे अंत:प्रकाश मिल जाए वह योगी ब्रह्म रूप हो जाता है,इस ब्रह्म मिलन में ही मोक्ष है।
सांख्य दर्शन के अनुसार,प्रकृति की माया के प्रभाव से मुक्त होना तथा कैवल्यता(बंधनों से मुक्ति) को प्राप्त करना ही मोक्ष है।
लोकमान्य तिलक के अनुसार, ...इससे यह समझना चाहिए कि जैसे सांख्यवादी त्रिगुणातीत पद से प्रकृति और पुरुष दोनों को स्वतंत्र मानकर पुरुष के अकेलेपन,केवलपन या कैवल्य को मोक्ष मानते हैं,वैसा ही मोक्ष गीता को भी मान्य है। गीता के अनुसार अध्यात्मशास्त्र में कही गयी ब्रह्म अवस्था 'अहं ब्रह्मास्मि' 'मैं ही ब्रह्म हूं', कभी तो भक्ति मार्ग से,कभी चित्तवृत्ति निरोध रूप पातंजलि योग से और कभी गुणावगुण विवेचन रूप सांख्य मार्ग से भी प्राप्त होती।....साधन कुछ भी हो,इतनी बात तो निर्विवाद है कि ब्रह्मात्मैक्य का अर्थात सच्चे परमेश्वर का ज्ञान होना,सब प्राणियों में एक ही आत्मा को पहचानना और उसी भाव के अनुसार बर्ताव करना ही अध्यात्म ज्ञान की परम विधि है। यह अवस्था जिसे प्राप्त हो जाए,वही पुरुष धन्य तथा कृत्य होता है। वास्तव में यही अवस्था मोक्ष है।
स्पष्टत: मोक्ष एक ऐसी स्थिति है जहां तीनों प्रकार के दुखों-आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक से छुटकारा हो जाता है। मोक्ष एक ऐसी अवस्था है,जहां दुखों का पूर्ण अभाव रहता है।जहां न दुख रहता और न सुख बल्कि इनसे परे केवल आनंद होता है- विशुद्ध आनंद।
कुछ दर्शनों ने मोक्ष को इसी जीवन में साध्य माना है और इसकी प्राप्ति को जीवनमुक्ति कहा है। जबकि अन्य इसे मृत्यु के बाद की स्थिति कहते हुए इसे विदेहमुक्ति कहते हैं।
मोक्ष के विषय में श्रुति कहती है कि-
न मोक्षो नभस: पृष्ठे न पाताले न भूतले।सर्वाशासंक्षये चेत: क्षयो मोक्षा इति श्रुति॥
अर्थात मोक्ष न आकाश में है न पाताल में और न पृथ्वी पर बल्कि सब प्रकार की इच्छाओं से छुटकारा ही मोक्ष है।
जैन,बौद्ध,सांख्य तथा वेदांत के अनुरूप हमारा स्पष्ट मत है कि व्यक्ति इसी जीवन में ,शरीर में रहते हुए मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। ओशो भी इसे स्वीकार करते हैं।
आधुनिक मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप से भटक गया है। वह काम और अर्थ की अंधी दौड़ में धर्म से च्युत हुआ है। वह माया को ही सत्य समझ बैठा है। यदि व्यक्ति धर्म को पहचाने और अर्थ और काम को उसके अनुरूप दिशा दे तो जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को यहीं,इसी जीवन में प्राप्त कर सकता है। आज व्यक्ति के कर्म सिर्फ बंधन बन रहे हैं,वह बंधन से मुक्त होना चाहता है,जो उसकी आदिम वृत्ति है। लेकिन उसे रास्ता नहीं सूझ रहा है। इस भटकाव के बाद शायद उसकी दृष्टि स्वयं की ओर उठे और वह स्वयं की खोज के लिए अपने में ही विश्राम पाने के लिए अंत:करण में झांके तो निश्चित ही वह आत्म-स्वरूप को पा लेगा। मोक्ष में ही मनुष्य की समस्त प्रवृत्तियों और निवृत्तियों का शमन है। वही समस्त नदियों का मिलन स्थल है...वही परम विश्राम है।
Bahut badhiya,jaankaaree se paripoorn aalekh!
जवाब देंहटाएंsach me aaj manushy bhatak gaya hai. use sahee rasta adhyatm se hi mil sakata hai.
जवाब देंहटाएंbehtreen post....
जवाब देंहटाएंमोक्ष क्या ज्ञान से जाना जा सकता है या अनुभव की बात है ?
जवाब देंहटाएंक्या कोई बोधिसत्व मोक्ष की यात्रा पर ले जा सकता है ?
क्या मोक्ष एक यात्रा है ?
मोक्ष साध्य है या साधन ?
बहुत से और सवाल खड़े हो गये आपके इस लेख से !!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@सम्वेदना के स्वर...
जवाब देंहटाएं*मोक्ष साध्य है साधन नहीं।
**मोक्ष ज्ञान की परम अवस्था है। ज्ञान जब इतना हो जाए कि भार बन जाए और निर्थक हो जाए तो अचानक निर्विचार का पथ आलोकित हो उठता है,यह अंत:प्रकाश ही आत्म स्वरूप,ब्रह्मानंद और आनंद है।
***सभी बुद्धों ने उसी का मार्ग बताया है।
मोक्ष यात्रा नहीं है।मंजिल है। जहां सभी यात्राएं समाप्त होती हैं। हां,इस मंजिल की ओर ले जाने वाले निश्चित मार्ग जरूर हैं-कोई भक्ति से,कोई ज्ञान से और कोई कर्म से ही उस तक पहुंच जाता है। लेकिन वहां पहुंच कर ज्ञान,भक्ति और कर्म छूट जाते हैं,कट जाते हैं। ये सीढ़ियां हैं,मंजिल पर पहुंच कर स्वत: छूट जाती हैं।
मोक्ष और आनंद का जो समबन्ध आपने स्पष्ट किया है वह वास्तव में आज के समाज से विलुप्त हो चुका है.. एक श्रृंखला जिसको आपने बहुत ही सरलता से सुनियोजित रूप में प्रस्तुत किया है..! बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपने मोक्ष शब्द के लगभग सभी अर्थों का संग्रहण कर दिया है और सरल शब्दों में कहा है. चार्वाक के विषय में मतभेद है. उनके साहित्य को बहुत बिगाड़ा गया है. चार्वाक को यदि किसी ने मूल रूप में संजो कर रखा है तो केवल बौधधर्म ने.
जवाब देंहटाएंमैंने कहीं पढ़ा था कि मोक्ष की एक अवधि होती है. इसी लिए संतों ने स्थाई मोक्ष का तरीका निकाला और पुनर्जन्म की अवधारणा पर प्रश्नचिह्न लगा कर उससे भी मुक्ति का रास्ता बताया.
बहुत बढ़िया पोस्ट.
Maine janha tak jana hai vairaagy aur tapsya hee Jain teerthankaro ko moksh prapti me sadhak rahe . Bahutu badiya a alekh .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!अपनत्व जी!
हटाएंकई बार पढा, समझने के लिये प्रयासरत हूँ! आभार!
जवाब देंहटाएंbahut badiya aadhyam se ru-b-ru karati sarthak prastuti....dhanyavad
जवाब देंहटाएं