तादात्म्य और चित्त की जटिलता
(पिछली पोस्ट में हमने जाना कि मनुष्य की सरलता खोती है उसके बनाए आदर्शों से,अनुकरण और अनुसरण से,अपने से अलग कुछ और बनने की कोशिश में। इस सरलता के खोने में एक और तत्त्व जिम्मेवार है और वह है तादात्म्य,आइए देखें कि तादात्म्य कैसे हमें जटिल बनाता है और खंडित करता है।) यह स्मरण रखें कि जीवन में जितना कम द्वंद्व,जितना कम संघर्ष,जितने कम व्यर्थ के तनाव,व्यर्थ के खंड कम हों,उतनी सरलता उत्पन्न होगी। मनुष्य जितना अखंड हो उतनी सरलता उपलब्ध होती है। हम खंड-खंड हैं। और हम अपनी अखंडता को अपने हाथों से तोड़े हुए हैं। हम अपनी अखंडता को कैसे तोड़ देते हैं? हम अपनी अखंडता को तादात्म्य से,आइडिन्टटी से तोड़ देते हैं। होता क्या है? मैं एक घर में पैदा हुआ। उस घर के लोगों ने मुझे एक नाम दे दिया और मैंने समझ लिया कि वह नाम मैं हूं। मैंने एक आइडिन्टटी कर ली। मैंने समझ लिया कि यह नाम मैं हूं। फिर मैं कहीं शिक्षित हुआ। फिर मुझे कोई उपाधि मिल गई। फिर मैंने उन उपाधियों को समझ लिया कि ये उपाधियां मैं हूं। फिर किसी ने मुझे प्रेम किया,तो मैंने समझ लिया कि लोग मुझे प्रेम करते हैं और वह प्रेम की तस्वीर ...