स्वामी रामतीर्थ के विचार

  • कोई चीज़ कितनी भी प्यारी क्यों न हो, अगर वह आत्म साक्षात्कार में बाधक हो तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए । 
  • सांसारिक वस्तुओं में सुख की तलाश व्यर्थ है । आनंद का खजाना तुम्हारे भीतर है । 
  • इच्छाओं से ऊपर उठ जाओ, वे पूरी हो जाएंगी ; माँगोगे तो उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेगी । 
  • जिस समय सब लोग तुम्हारी प्रशंसा करेंगे, वह समय तुम्हारे रोने का होगा, क्योंकि इसी प्रकार झूठे अवतारों के पिताओं ने उनकी प्रशंसा की थी । 
  • चिंताएँ, परेशानियाँ, दु:ख और तकलीफे परिस्थितियों से लड़ने से दूर नहीं हो सकती, वे दूर होंगी अपनी भीतरी दुर्बलता दूर करने से, जिसके कारण वे पैदा हुई हैं । 
  • हमारे समस्त दुखों का प्रधान कारण यह है कि हम अपने प्रति सच्चे न रहकर दूसरों को खुश करते रहते हैं । 
  • सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ के मकान में रहता है, बल्कि वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार-स्तर पर रहता है । 
  • अपनी प्रत्यक्ष अनुभूति को ही अंतिम प्रमाण मानों । 
  • केवल आत्मज्ञान ही है, जो हमें सब जरूरतों से परे कर सकता है । 
  • दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता, जितना स्वयं को बचाता है । 
  • समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है । 
  • जो तमाम इच्छाओं से ऊपर उठ गया है,उसके द्वारा भलाई सदा इस तरह अनजाने, सहज और स्वाभाविक तौर से होती रहती है जैसे फूल से खुशबू और सितारों से रोशनी निकलती रहती है । 
  • अपने भीतर की परम निधि पाने के लिए और स्वर्ग के साम्राज्य का ताला खोलने के लिए इसी ऊँचाई की ताली को काम में लाना होगा । 

टिप्पणियाँ

  1. सांसारिक वस्तुओं में सुख की तलाश व्यर्थ है । आनंद का खजाना तुम्हारे भीतर है....

    Bilkul sahi kha ji aap ne....

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  2. In santon ne yah seekh apne jeevan me dhaal dee thi...kora updesh na tha,isiliye unke wachan yaad rah jate hain!

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  3. सांसारिक वस्तुओं में सुख की तलाश व्यर्थ है । आनंद का खजाना तुम्हारे भीतर है....
    kitni sundar baat kahi .
    jeevan anubhav ko samate huye .

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  4. इच्छायें छोडने से सब दुख मिट जायेगा!!
    क्या यह अपने आप में सबसे अधिक लालचपूर्ण इच्छा न होगी?

    चैतन्य.

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    उत्तर
    1. अनन्त इच्छाओं के जाल में फंसने से बेहतर है कि एकमात्र इच्छा का अवलम्बन लेना।

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  5. इसे मैं कई बार पढ़ गया. बहुत बढ़िया.

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  6. @your comment on my recent post:
    @मनोज भारती जी...
    आपके उद्गार के लिए धन्यवाद!! हम जब जब आत्मा से कोई बात कहना चाहते हैं त हमरे अंदर से ओशोवाणी फूट पड़ता है...लगता है कि ऊ हमरे अंदर से बोल रहे हैं... इसलिए उनका कोई भी दृष्टांत देकर हमको सर्मिंदगी महसूस हो, ई हो ही नहीं सकता... एक बात मन को कचोट रहा था...इसलिए लगातार दुसरे दिन ई पोस्ट लिखना पड़ा... समय देखिए, रात भर जगने के बाद भोर में ई पोस्ट लगाए हैं हम…यह पोस्ट जिसके लिए लिखा गया था, उनसे क्षमा मांगे थे हम कि हमरे बात से आहत न हों... उनको पता भी नहीं चला, इसलिए फोन से समझाना पड़ा...
    पुनः आपका धन्यवाद!! और क्षमा, मेरी टिप्पणी के लिए!

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  7. चिंताएँ, परेशानियाँ, दु:ख और तकलीफे परिस्थितियों से लड़ने से दूर नहीं हो सकती, वे दूर होंगी अपनी भीतरी दुर्बलता दूर करने से, जिसके कारण वे पैदा हुई हैं
    भीतरी दुर्बलता को समझना होगा ....

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  8. sadgranth aur sadguru rasta batate hai,chalana khud ko padega,jo milega vo tumare andar hi hai,aur kahi nahi

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