नास्तिक दर्शन

नास्तिक दर्शनों में चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन आते हैं । ये वेदों के प्रमाण में विश्वास नहीं रखते, इसलिए नास्तिक दर्शन के अंतर्गत रखे गए हैं ।

चार्वाक दर्शन के प्रणेता बृहस्पति माने जाते हैं । बार्हस्पत्य सूत्र इनका ग्रंथ माना जाता है, जो अप्राप्य है । सर्व दर्शन संग्रह के पहले अध्याय में चार्वाक मत के सिद्धांतों का सार मिलता है । इसे लोकायत दर्शन के नाम से भी जाना जाता है । प्रबोध चंद्रोदय नाटक में इस नाम का उल्लेख आया है । भूमि, जल, अग्नि,वायु जिनका प्रत्यक्ष अनुभव हो सकता है, इनके अतिरिक्त संसार में कुछ भी नहीं है । इन चार तत्वों के समिश्रण से ही चेतना शक्ति और बुद्धि का प्रादुर्भाव होता है । इनके अनुसार ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत, अर्थात ऋण लेकर भी घी का भोग करना चाहिए । इस लोक के अलावा और कोई दूसरा लोक नहीं है । इसलिए इस लोक का भरपूर आनंद लेना चाहिए, खूब ऐश-आराम करना चाहिए । शरीर के एक बार भस्म हो जाने पर वह पुन: वापिस लौट कर नहीं  आता ।

जैन दर्शन के प्रणेता वर्धमान हैं । जो जिन् कहलाए और महावीर के नाम से जाने जाते हैं । जिन का अर्थ है जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया अर्थात स्वयं का साक्षात्कार कर लिया । जैनों में महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हैं । पहले तीर्थंकर ऋषभदेव हैं और तेइसवें पार्श्वनाथ हैं । इनके बारे में आगे हम फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे ।

बुद्ध दर्शन के प्रणेता गौतम बुद्ध हैं । बुद्ध दर्शन में चार आर्य सत्य हैं । 1. दुख है । 2. दुख का कारण है 3.दुख निरोध का उपाय है । 4.दुख निरोध का उपाय प्रतीत्यसमुत्पाद है । इस दर्शन का मुख्य मंतव्य है कि संसार दुख है । दुखों का कारण इच्छाएँ हैं । इच्छाओं से मुक्त हुआ जा सकता है । क्षणिकवाद बुद्ध की देशना है । आत्मा के संबंध में गौतम बुद्ध ने मौन धारण करना ही उचित जाना । उनके मतानुसार व्यक्तित्व परिवर्तनशील है । इस दर्शन के बारे में भी हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।

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