समाज और सत्य

"समाज में रहने के लिए'सत्य' जैसे खुले आकाश की नहीं; बल्कि बंद,अंधेरे कमरे जैसे 'झूठ' की ज्यादा जरूरत रहती है।" _मनोज भारती 

टिप्पणियाँ

  1. fir jo ghutan hogee usaka kya......?na baba na aise samaj ko namaskar....
    kaduva saty......

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  2. यह हमारा दुर्भाग्य है मनोज भाई कि हम ऐसे समाज में रह रहे हैं.. क्या हमने ऐसे ही समाज की कल्पना की थी????

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  3. रोगियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है ! वे रहना चाहते हैं घुटन भरे झूठे खोल में ! रहने दीजिये उन्हें वैसे ही ! सत्य की राह सब के बस की है भी नहीं ! सत्य की राह पर चलना जलते हुए अंगारों पर चलने के सामान है ! और इस राह पर चलने की ख़ुशी कुछ लोगों को हासिल है ! वे ही जानते हैं सत्य से मिलने वाले सुख को !

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  4. न...न...न...न. सत्य के कमरे में रहिए झूठ वाले में आवश्यकतानुसार जाइए.- भारत भूषण उवाच :))

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  5. @भूषण जी !!! समझौतावादी दृष्टिकोण सत्य नहीं जानता।

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  6. पुनश्च: समझौतावाद में अवसरवाद समाहित है।

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