मौन की साधना कभी आप स्वयं को एक एकांत कमरे में बंद करके चुपचाप बैठ जाइए और अपने अंदर झांकने की कोशिश कीजिए । आप वहां क्या पाते हैं ? एक असंगत विचारों की धारा । कभी आपको अपनी प्रेयसी का ख्याल आता है, तो कभी आप अचानक स्वयं को सफलता के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई पड़ते हैं । आपका मन निरंतर पेंडूलम की तरह एक अति से दूसरी अति पर डोलता दिखाई पड़ेगा । कभी अतीत के झरोखों में तो कभी भविष्य के गर्भ में मन खो जाएगा । क्या इन विचारों की भीड़ में आपको स्वयं का चेहरा कभी दिखाई पड़ता है, जो स्वयं आपका अपना हो ? शायद नहीं । क्या कभी आपने स्वयं को पहचानने की कोशिश की है ? क्या आपके मन में जीवन के प्रश्न उठते हैं ? यदि हाँ, तो संभवत: आपको मौन होने की कला सीखनी चाहिए । मौन होने से अभिप्राय: मौन होने का अर्थ क्या है ? क्या जब आप अपने मुँह से कुछ नहीं बोल रहे होते हैं, तो क्या आप मौन में हैं ? या जब आप एकांत में बैठे हैं, तो क्या आप मौन हैं ? या जब आप दुसरों से मौखिक प्रतिक्रुया नहीं कर रहे, तब क्या आप मौन हैं ? मौन से आशय क्या है ? मौन से अभिप्राय: मन की उस दशा से है, जब मन में विचारों का कोई प्र...