दफ्तर की ज़िन्दगी
दफ़्तर की जिंदगी कितनी निरस और उबाऊ होती है, इसका अहसास होने लगा है । दफ्तर में व्यक्ति का व्यक्तित्व खोने लगता है । उसकी आत्मा मरने लगती है । वह व्यक्ति नहीं बल्कि वस्तु अधिक होता है ; जिसका अधिकारी मनचाहा प्रयोग करते हैं । उसकी निजी स्वतंत्रता दफ़्तरी तंत्र में खो जाती है । एक तर्कसंगत और बुद्धिपूर्ण बात आप अपने से बड़े अधिकारी से मात्र इसलिए नहीं कह सकते कि वह आप से ऊँची कुर्सी पर बैठा है । यदि कहो तो यह बुद्धिहीनता और अनुभवहीनता को बताने वाली होती है । क्योंकि ऊँची कुर्सी पर बैठा अधिकारी चाटुकारिता का आदि है और उसकी नज़र में वह दुनिया का सबसे बड़ा समझदार व्यक्ति है । एक संवेदनशील व्यक्ति के लिए दफ़्तर नरक साबित होता है ।
(८ फरवरी १९९९, सोमवार को लिखी डायरी का अंश )
(८ फरवरी १९९९, सोमवार को लिखी डायरी का अंश )
मैं आपसे असहमत होना चाहता हूं।
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यूँ, मुझे अपने दफ्तर में यह भाव नहीं उठते.
जवाब देंहटाएंhappy new year.may God give you all the peace in life
जवाब देंहटाएंbahut khoob...
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