वर्ष २००९ में प्रसिद्ध हस्तियों ने क्या पढ़ा ?
हर वर्ष कुछ अच्छा लिखा जा रहा है । कुछ पुराना नए कलेवर और साज़-सज्जा के साथ पुन: प्रकाशित होता है । वर्ष २००९ में प्रसिद्ध हस्तियों ने इनमें से क्या पढ़ा, जो उन्हें पसंद आया ... इस पोस्ट में विभिन्न माध्यमों से संकलित सामग्री दे रहा हूँ... शायद आप भी कोई रचना पढ़ें और इनका आनंद ले सकें : -
कवयित्री अनामिका और अर्चना वर्मा ने पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक "अकथ कहानी प्रेम की" को बेहतरीन पाया । अनामिका की दृष्टि में कथ्य और भंगिमा की दृष्टि से यह उम्दा किताब है । निधि और संवेद अनुभव में लिखी यह पुस्तक कोमल कोलाहल मन से शांति की बात करती है । हालांकि आलोचना की पुस्तक एकेडमिक भाषा में लिखी जाती है, लेकिन लेखक ने इसमें अपनी ही शैली को तोड़ा है ।
अर्चना वर्मा कवयित्री और आलोचक इस पुस्तक के बारे में कहती हैं : यह हिंदी समीक्षा और मध्यकालीन समीक्षा एवं समकालीन समीक्षा के भीतरी परिवर्तन को दिखाने वाली किताब है । यहां हिंदी में उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण दिखाई देता है । यह पुस्तक पश्चिमी दर्शन से लोहा लेते हुए भारतीय दर्शन को दर्शाती है कि हमें खुद की पहचान करनी चाहिए । इससे स्पष्ट झलकता है कि लेखक ने विषय आधारित काफी अध्ययन किया है ।
कैलाश वाजपेयी (कवि और निबंधकार) ने हिमांशु शेखर के संपादन में "प्रतिनिधि अप्रवासी हिंदी कहानियाँ पुस्तक को उल्लेखनीय पाया । इसमें भारत में नहीं रहने वाले भारतीयों के दर्द और समस्या के साथ पारिवारिक दुर्व्यवस्था को समझने का अवसर मिलता है । इसमें उनकी सूक्ष्म पीड़ा दिखाई देती है । कीर्ति चौधरी की कहानी जहांआरा, दिव्या माथुर की फिर कभी सही, नार्वे में रहने वाले अमित जोशी की वीजा विशेष रूप से उन्हें पसंद आई । इनमें जो घुटन है, वह भारत में रहकर महसूस नहीं की जा सकती । हिमांशु शेखर का चुनाव भारतीय परिवेश के बाहर का है । लेकिन यह वहां के समाज की पेंचदार सहमतियां और असहमतियां दर्शाता है । ये हिंदी साहित्य के नए क्षितिज की कहानियाँ हैं ।
सुधीश पचौरी (मीडिया-समीक्षक) ने नंदकिशोर आचार्य का कविता संकलन "उड़ना संभव करता आकाश" को प्रशंसनीय पाया । इसमें छोटी-छोटी नए ढ़ंग से लिखी गई कविताएँ हैं, जिनमें कोई चीख-पुकार नहीं है , जैसा प्राय: आजकल की कविताओं में देखने को मिलता है । सहज अनुभवों को समेटता यह कविता संकलन अच्छा लगा । इसमें स्थितयों की विद्रुपताओं और विडम्बनाओं का चित्रण है ।
उदय प्रकाश (कवि और कथाकार) ने जहांआरा बेगम की जीवनी पढ़ी, जिसका हाल ही में अंग्रेजी अनुवाद आया है । इस किताब में मुगलकाल की स्थितियों को काफी सही तरीके से दर्शाया गया है । इसमें दारा शिकोह और औरंगजेब की स्थिति को बताया गया है । औरंगजेब कितना क्रूर औ चालबाज था । जहांआरा बेगम दाराशिकोह को ही दिल्ली सल्तनत पर बैठा हुआ देखना चाहती थी । वह राजस्थान के एक राजपूत से प्रेम करती थी । अगर दाराशिकोह सुल्तान बनता तो उनकी यह आरजू शायद पूरी हो जाती ।
आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने दो किताबों को चर्चा के योग्य समझा । पहली तो कृष्णा सोबती की पुस्तक "मित्रो मरजानी " है जो अब नए कलेवर में आई है । नरेन्द्र श्रीवास्तव ने इसे टाइपोग्राफिकल व्याख्या के साथ छापा है । इसमें जो टेक्स्ट दिया गया है, उसके दूसरी तरफ उसके चित्र दिए गए हैं । हिंदी में संभवत: यह पहला प्रयोग है । दूसरी पुस्तक राकेश रंजन का कविता संग्रह "चांद पर अटकी पतंग "है । यह बेहतरीन पुस्तक है । इसमें देशज और भदेश शब्दों से सजी एकदम नए ढ़ंग की कविताएँ हैं । कविताओं में शब्दों का जीवन सुरक्षित है । लेखक में राजनीतिक और आंचलिक समझ है ।
जावेद अख्तर (गीतकार) ने कई किताबे पढ़ी । लेकिन जो सबसे अधिक पसंद आई या जिसकी चर्चा वे करना चाहते हैं, वह किताब है -रिचर्ड डाकिंस की "गॉड डिल्यूजन" । लेखक ने इतिहास,विज्ञान और अन्य तथ्यों से जानकारियाँ जुटाकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि ईश्वर नहीं है जबकि बहुत से लोगों का विश्वास है कि ईश्वर है । ईश्वर इंसान का भ्रम है । यह पुस्तक भगवान की अवधारणा को खंडित करती है ।
शोभना नारायण (नृत्यंगना ) ने साल के अंत में सुजाता विश्वनाथन की पुस्तक "द कोकोनट वाटर "पढ़ी । इस पुस्तक में एक सामाजिक समस्या को दर्शाती हुई साधारण कहानी है । इसमें एक प्रवासी भारतीय की कहानी है , लेकिन अंतत: एक मानव द्वारा परेशानियों से झूझते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करना अच्छा लगा । यह उपन्यास सीख देता है कि आप में दृढ़-इच्छा शक्ति है तो आप अवश्य सफलता प्राप्त करेंगे ।
मंगेश डबराल (कवि)ने विरेन डंगवाल का संग्रह " स्याही ताल" पढ़ा । इसे कुंवर नारायण के संग्रह "हाशिए का गवाह "के बाद पढ़ना उनके लिए सुखद अनुभव रहा । इससे वीरेन एक समर्थ कवि के रूप में सामने आते हैं । इसमें उनकी काव्यात्मक ऊंचाई दिखाई देती है । इस संसग्रह को पढ़ते हुए लगता है कि कविता कहीं से शुरु हो सकती । अनुभव का कोई टुकड़ा कविता बन सकता है । यह संग्रह नए तथ्य और नए विन्यास के लिए जाना जाएगा । इसमें छोटे-छोटे अनुभव को बड़े यथार्थ से चीड़-फाड़ करते हुए दिखाई देते हैं ।
मैनेजर पांडे (आलोचक) ने "ग्लोबल गाँव के देवता " पढ़ी जिसके लेखक रणेन्द्र हैं ।
राजेन्द्र यादव (कथाकार, विचारक) ने लता शर्मा के उपन्यास "उसकी नाप के कपड़े" उल्लेखनीय माना ।
कवयित्री अनामिका और अर्चना वर्मा ने पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक "अकथ कहानी प्रेम की" को बेहतरीन पाया । अनामिका की दृष्टि में कथ्य और भंगिमा की दृष्टि से यह उम्दा किताब है । निधि और संवेद अनुभव में लिखी यह पुस्तक कोमल कोलाहल मन से शांति की बात करती है । हालांकि आलोचना की पुस्तक एकेडमिक भाषा में लिखी जाती है, लेकिन लेखक ने इसमें अपनी ही शैली को तोड़ा है ।
अर्चना वर्मा कवयित्री और आलोचक इस पुस्तक के बारे में कहती हैं : यह हिंदी समीक्षा और मध्यकालीन समीक्षा एवं समकालीन समीक्षा के भीतरी परिवर्तन को दिखाने वाली किताब है । यहां हिंदी में उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण दिखाई देता है । यह पुस्तक पश्चिमी दर्शन से लोहा लेते हुए भारतीय दर्शन को दर्शाती है कि हमें खुद की पहचान करनी चाहिए । इससे स्पष्ट झलकता है कि लेखक ने विषय आधारित काफी अध्ययन किया है ।
कैलाश वाजपेयी (कवि और निबंधकार) ने हिमांशु शेखर के संपादन में "प्रतिनिधि अप्रवासी हिंदी कहानियाँ पुस्तक को उल्लेखनीय पाया । इसमें भारत में नहीं रहने वाले भारतीयों के दर्द और समस्या के साथ पारिवारिक दुर्व्यवस्था को समझने का अवसर मिलता है । इसमें उनकी सूक्ष्म पीड़ा दिखाई देती है । कीर्ति चौधरी की कहानी जहांआरा, दिव्या माथुर की फिर कभी सही, नार्वे में रहने वाले अमित जोशी की वीजा विशेष रूप से उन्हें पसंद आई । इनमें जो घुटन है, वह भारत में रहकर महसूस नहीं की जा सकती । हिमांशु शेखर का चुनाव भारतीय परिवेश के बाहर का है । लेकिन यह वहां के समाज की पेंचदार सहमतियां और असहमतियां दर्शाता है । ये हिंदी साहित्य के नए क्षितिज की कहानियाँ हैं ।
सुधीश पचौरी (मीडिया-समीक्षक) ने नंदकिशोर आचार्य का कविता संकलन "उड़ना संभव करता आकाश" को प्रशंसनीय पाया । इसमें छोटी-छोटी नए ढ़ंग से लिखी गई कविताएँ हैं, जिनमें कोई चीख-पुकार नहीं है , जैसा प्राय: आजकल की कविताओं में देखने को मिलता है । सहज अनुभवों को समेटता यह कविता संकलन अच्छा लगा । इसमें स्थितयों की विद्रुपताओं और विडम्बनाओं का चित्रण है ।
उदय प्रकाश (कवि और कथाकार) ने जहांआरा बेगम की जीवनी पढ़ी, जिसका हाल ही में अंग्रेजी अनुवाद आया है । इस किताब में मुगलकाल की स्थितियों को काफी सही तरीके से दर्शाया गया है । इसमें दारा शिकोह और औरंगजेब की स्थिति को बताया गया है । औरंगजेब कितना क्रूर औ चालबाज था । जहांआरा बेगम दाराशिकोह को ही दिल्ली सल्तनत पर बैठा हुआ देखना चाहती थी । वह राजस्थान के एक राजपूत से प्रेम करती थी । अगर दाराशिकोह सुल्तान बनता तो उनकी यह आरजू शायद पूरी हो जाती ।
आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने दो किताबों को चर्चा के योग्य समझा । पहली तो कृष्णा सोबती की पुस्तक "मित्रो मरजानी " है जो अब नए कलेवर में आई है । नरेन्द्र श्रीवास्तव ने इसे टाइपोग्राफिकल व्याख्या के साथ छापा है । इसमें जो टेक्स्ट दिया गया है, उसके दूसरी तरफ उसके चित्र दिए गए हैं । हिंदी में संभवत: यह पहला प्रयोग है । दूसरी पुस्तक राकेश रंजन का कविता संग्रह "चांद पर अटकी पतंग "है । यह बेहतरीन पुस्तक है । इसमें देशज और भदेश शब्दों से सजी एकदम नए ढ़ंग की कविताएँ हैं । कविताओं में शब्दों का जीवन सुरक्षित है । लेखक में राजनीतिक और आंचलिक समझ है ।
जावेद अख्तर (गीतकार) ने कई किताबे पढ़ी । लेकिन जो सबसे अधिक पसंद आई या जिसकी चर्चा वे करना चाहते हैं, वह किताब है -रिचर्ड डाकिंस की "गॉड डिल्यूजन" । लेखक ने इतिहास,विज्ञान और अन्य तथ्यों से जानकारियाँ जुटाकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि ईश्वर नहीं है जबकि बहुत से लोगों का विश्वास है कि ईश्वर है । ईश्वर इंसान का भ्रम है । यह पुस्तक भगवान की अवधारणा को खंडित करती है ।
शोभना नारायण (नृत्यंगना ) ने साल के अंत में सुजाता विश्वनाथन की पुस्तक "द कोकोनट वाटर "पढ़ी । इस पुस्तक में एक सामाजिक समस्या को दर्शाती हुई साधारण कहानी है । इसमें एक प्रवासी भारतीय की कहानी है , लेकिन अंतत: एक मानव द्वारा परेशानियों से झूझते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करना अच्छा लगा । यह उपन्यास सीख देता है कि आप में दृढ़-इच्छा शक्ति है तो आप अवश्य सफलता प्राप्त करेंगे ।
मंगेश डबराल (कवि)ने विरेन डंगवाल का संग्रह " स्याही ताल" पढ़ा । इसे कुंवर नारायण के संग्रह "हाशिए का गवाह "के बाद पढ़ना उनके लिए सुखद अनुभव रहा । इससे वीरेन एक समर्थ कवि के रूप में सामने आते हैं । इसमें उनकी काव्यात्मक ऊंचाई दिखाई देती है । इस संसग्रह को पढ़ते हुए लगता है कि कविता कहीं से शुरु हो सकती । अनुभव का कोई टुकड़ा कविता बन सकता है । यह संग्रह नए तथ्य और नए विन्यास के लिए जाना जाएगा । इसमें छोटे-छोटे अनुभव को बड़े यथार्थ से चीड़-फाड़ करते हुए दिखाई देते हैं ।
मैनेजर पांडे (आलोचक) ने "ग्लोबल गाँव के देवता " पढ़ी जिसके लेखक रणेन्द्र हैं ।
राजेन्द्र यादव (कथाकार, विचारक) ने लता शर्मा के उपन्यास "उसकी नाप के कपड़े" उल्लेखनीय माना ।
रोचक जानकारी दी ......!!
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