दु:ख

देखा है जिंदगी को
कुछ इतने करीब से कि
दुख के सिवाय
सब बेगाने लगने लगे हैं

जीवन में जब सुख आता है तो वह बँटना चाहता है । लेकिन जब दुख आता है तो मनुष्य संकुचित हो जाता है । स्वयं में सिमट जाना चाहता है । वस्तुत: दुख सुख की जड़ है । जिस आदमी के जीवन में दुख नहीं वह जड़ विहीन वृक्ष की तरह है, जो शीघ्र ही कुम्हला जाएगा ।

दुख व्यक्ति के सर्वाधिक निकट है । जो व्यक्ति दुख की गहराइयों में नहीं प्रवेश करता ,वह सुख की ऊँचाइयाँ भी नहीं छू सकता । जो दुख कि गहराइयों में प्रवेश करता है, उसके सुख की ऊँचाइयाँ इतनी बुलंद होंगी की उसकी सघन छाया में सारा संसार विश्राम करता है ।

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