दु:ख
देखा है जिंदगी को
कुछ इतने करीब से कि
दुख के सिवाय
सब बेगाने लगने लगे हैं
जीवन में जब सुख आता है तो वह बँटना चाहता है । लेकिन जब दुख आता है तो मनुष्य संकुचित हो जाता है । स्वयं में सिमट जाना चाहता है । वस्तुत: दुख सुख की जड़ है । जिस आदमी के जीवन में दुख नहीं वह जड़ विहीन वृक्ष की तरह है, जो शीघ्र ही कुम्हला जाएगा ।
दुख व्यक्ति के सर्वाधिक निकट है । जो व्यक्ति दुख की गहराइयों में नहीं प्रवेश करता ,वह सुख की ऊँचाइयाँ भी नहीं छू सकता । जो दुख कि गहराइयों में प्रवेश करता है, उसके सुख की ऊँचाइयाँ इतनी बुलंद होंगी की उसकी सघन छाया में सारा संसार विश्राम करता है ।
सत्य वचन!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंgaagar me saagar walee baat rahee !
जवाब देंहटाएंise samay hee to apano kee pahchan hotee hai jeevan me!
sahi baat kahi hai aapne..vaise ek ukti hai :
जवाब देंहटाएंdheeraj, dharm,mitar or naari, aapat kaal parkhiye chari
देखा है जिंदगी को
जवाब देंहटाएंकुछ इतने करीब से कि
दुख के सिवाय
सब बेगाने लगने लगे हैं
yahi panktiyaan itni chhoo gayi ki aage kya boloo .sundar