सौंदर्य
अ ज्ञात के मौन आमंत्रण में सौंदर्य है । बाह्य लिपा-पोती कुरुपता को ढ़ांपने के लिए है । क्या सौंदर्य को भी बाह्य प्रसाधनों और सजने-संवरने की जरूरत होती है ? सौंदर्य शरीर का ही नहीं बल्कि उसके अंतस का भी होता है । कुछ लोग शारीरिक सौंदर्य के अहंकारवश अंतस सौंदर्य को खो देते हैं । सौंदर्य सदैव एक नवीन अहसास है । अनुभव है । प्रकृति में सौंदर्य प्रतिक्षण निखर रहा है । सौंदर्य को देखने के लिए संवेदनशीलता चाहिए । प्रकृति में सौंदर्य भरा पड़ा है । जिन्हें प्रकृति का यह सौंदर्य दिखाई नहीं पड़ता, उन्हें संवेदनशीलता पुन: प्राप्त करनी होगी । सौंदर्य का संबंध मन से है । जहां कहीं सौंदर्य का अभाव आरोपित किया जाता है, वहां कुरुपता दिखाई देती है । सौंदर्य अधिकार-भाव से मुक्त है । सुंदरता कभी अधिकारपूर्वक नहीं कहती - "मैं सुंदर हूँ ।" सौंदर्य आंतरिक भाव है । अंतस सजग है और वह क्षण प्रति क्षण जीना जानता है तो सर्वत्र सौंदर्य है । कृष्ण श्याम वर्ण हैं, फिर भी उनमें अद्भूत सौंदर्य है । वे जो हैं उसे पूर्णता से, सजगता से और सहजता से जीते हैं । अपने अंतस के अतिरिक्त वहां कुछ और होने का प्रयास या ...