उसी से गर्म उसी से ठंडा : विरोधाभास

सर्दियों के दिन थे । कड़ाके की ठंड पड़ रही थी । गुरु और शिष्य यात्रा पर थे । सुबह-सुबह उठे तो ठंड से ठिठुरे जा रहे थे । गुरु ने सहसा अपनी दोनों हथेलियों को रगड़ना शुरु किया और उनमें मुंह से फूंक मारना शुरु किया । यह देख कर शिष्य ने गुरु से जानना चाहा- "गुरु जी ! आप हाथों को क्यों रगड़ रहें हैं और उसमें फूंक क्यों रहें हैं ?" गुरु ने कहा कि हाथों को रगड़ने और उसमें गर्म फूंक मारने से शरीर को ठंड नहीं लगती, इससे शरीर में गर्माहट आती है । कुछ देर बाद उन्होंने आग जलाई और उसमें खाने के लिए आलू भूने । गुरु ने आलू आग से निकाले । आलू अभी गर्म थे । आलू छीलना शुरु किया और मुंह से फूंक-फूंक कर उन्हें ठंडा करने लगे । शिष्य ने पूछा गुरु जी आप आलू में फूंक क्यों मार रहें हैं ? गुरु ने कहा फूंक कर आलू को ठंडा कर रहा हूँ । शिष्य ने पूछा, कुछ देर पहले आप फूंक कर अपनी हथेलियों को गर्म कर रहे थे और अब फूंक कर आलुओं को ठंडा कर रहे हो । यह कैसे संभव है कि उसी से गर्म और उसी से ठंडा ? गुरु ने कहा- "ऐसा ही है, जीवन में बहुत सी चीजों का स्वभाव गर्म या ठंडा हो सकता है, लेकिन उनका उपयोग हम कैसे करते हैं, उस से वे हमारे लिए उपयोगी और सार्थक बन जाती हैं ।" फूंक की तरह जो कभी हथेलियों को गर्म करने के काम आती है तो कभी आलुओं को ठंडा करने के लिए । वह स्वयं में गर्म है, लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में इसका प्रयोग बड़ा विरोधाभासी है । बुद्ध पुरुषों के वचन भी ऐसे ही होते हैं । जो बहुत बार हमें विरोधाभासी लगते हैं लेकिन हर परिस्थिति में सार्थक होते हैं ।

टिप्पणियाँ

  1. भारती जी,
    सादर प्रणाम,
    आपकी इस लघु कथा का जवाब नहीं... कैसे एक ही वास्तु की उपयोगिता अलग-अलग परिस्थिति में भिन्न हो सकती हैं... .
    कमाल हो गया इस नज़र से तो देखा ही नहीं था...
    बेहतरीन..
    धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं
  2. बुद्ध पुरुषों के वचन भी ऐसे ही होते हैं । जो बहुत बार हमें विरोधाभासी लगते हैं लेकिन हर परिस्थिति में सार्थक होते हैं

    सत्य वचन.

    पर हाँ, ऊष्मा सदेव उच्च तापमान से निम्न तापमान की और प्रवाहित होती है. हथेली का रगड़ना और फुकना गर्मी प्राप्त करने के लिए और आलू को रगड़ना और फुकना उसकी गर्मीं शारीर में लेने के लिए है, प्रयोग में विरोधाभास के तो दर्शन होते हैं पर विज्ञानं के हिसाब से ऊष्मा उच्च तापमान से निम्न तापमान की और प्रवाहित हो रही है

    कथा अच्छी बन पड़ी, विरोधाभाष की समझ अच्छी तरह बताई.
    बधाई

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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