मनुष्य का जीवन

कहते हैं भगवान ने जब सृष्टि की रचना की और पृथ्वी पर जीवन की परिकल्पना की, तो सभी प्राणियों को ४० वर्ष की उम्र दी । मनुष्य को छोड़कर अन्य सभी प्राणी भगवान को अनुगृहीत भाव से धन्यवाद देकर पृथ्वी पर उतरने लगे । लेकिन असंतुष्ट मनुष्य की जब पृथ्वी पर जाने की बारी आई, तो उसने भगवान से प्रार्थना की कि २० साल की उम्र में तो शादी करुंगा और ४० साल की उम्र तक तो बच्चे भी बड़े नहीं होंगे और मेरे मरने की घड़ी आ जाएगी । इसलिए प्रभु से अनुरोध है कि मेरी उम्र बढ़ा दी जाए । भगवान ने मनुष्य के अनुरोध को स्वीकार करते हुए कहा कि, तुम अभी रुको, जिसे उम्र कम चाहिए होगी, उसकी उम्र मैं तुम्हें दे दूँगा ।
जब गधे की बारी आई, तो उसने भगवान से कहा कि मैं पृथ्वी पर ४० साल तक क्या करुँगा । उन्होंने कहा, बोझ उठाना और मनुष्य की सेवा करना । गधे ने प्रार्थना की कि मेरी उम्र २० साल कम कर दें, इतनी लंबी आयु का बोझ मैं कैसे उठाऊँगा । भगवान ने उसकी उम्र २० वर्ष कम करके शेष २० वर्ष की आयु मनुष्य को दे दी । मनुष्य ६० वर्ष की आयु से भी संतुष्ट न हुआ । आगे बारी आई कुत्ते की । उसने भी पूछा, मैं पृथ्वी पर ४० वर्ष तक क्या करुँगा । भगवान ने जवाब दिया, मनुष्य की रक्षा करना । कुत्ते ने भी अपनी उम्र कम करने का भगवान से आग्रह किया । भगवान ने प्रार्थना स्वीकार की ओर कुत्ते की आयु २० वर्ष निर्धारित कर दी, तथा शेष २० वर्ष की आयु असंतुष्ट मनुष्य को दे दी । अगले क्रम पर उल्लू ने भी भगवान से पूछा, मैं ४० वर्ष तक पृथ्वी पर क्या करुँगा, प्रभु । भगवान ने कहा, तुम रातभर जाग कर पेड़ पर उल्टा लटकना । उसने भी इस कर्म को४० वर्षों तक झेलना उचित न समझा और अपनी आयु कम करने का अनुरोध किया । और मनुष्य ८० वर्ष की उम्र पाने पर भी संतुष्ट न था । उल्लू की प्रार्थना भी स्वीकार कर ली गई । भगवान ने उसकी उम्र २० वर्ष कम कर दी और उसकी शेष आयु मनुष्य को भेंट कर दी । इस प्रकार मनुष्य की आयु १०० साल हो गई । भगवान को धन्यवाद देकर मनुष्य धरती पर चला आया ।

२० वर्ष की वय में उसने शादी रचाई । २० से ४० वर्ष तक उसने बच्चों को पढ़ाया और जीवन को किसी हद तक सुखी-सुखी जीने का साहस दिखाया । अब ४० से ६० साल की उम्र तक उसने बेटी की शादी की,बेटे को नौकरी लगवाया, घर बनवाया, धन इकट्ठा किया अर्थात् गधे की तरह कार्य में जुटा रहा । ६० साल की उम्र में स्वयं की नौकरी से रिटायर हो गया । ६० से ८० साल के बीच उसके बेटे बड़े होकर जिम्मेदारियाँ संभालने लगे । अब वह पूरे दिन बेटे-बहू के काम में भौंक-भौंक कर दखलंदाजी करने लगा तो बेटे ने बहु से कहा कि अब यह बूढ़ा हो गया है । इसलिए कुत्ते की तरह भौंकता है । औरअब उसके पास घर के बाहर कुत्तों की तरह बैठ कर पहरेदारी करने सिवा कोई चारा न रहा । अब ८० साल कुत्ते की तरह भौंकते और पहरेदारी में बीत गए । शेष बचे ८० से १०० साल । उसमें उसकी आंखें कमजोर हो गई , लेकिन कान बहुत तेज हो गए । उसे रात भर उल्लू की तरह नींद नहीं आती और वह यह पूछता रहता है, क्या हुआ ? इस तरह मनुष्य अपनी जिंदगी जीता है ।

क्या यह कहानी मात्र कल्पित-कपोल है या वास्तव में ही मनुष्य की लोभ वृत्ति और उसके जीवन के प्रति मोह की द्योतक नहीं ? क्या मनुष्य अपने स्वभाविक जीवन से हटकर अन्य प्राणियों के जीवन की कामना नहीं रखता ? यदि नहीं, तो इस जीवन को सफल बनाने के लिए इसके मर्म को पहचाने और सार्थक जीवन जिएं ।

टिप्पणियाँ

  1. सादर प्रणाम,
    यद्यपि यह कहानी सुनी हुई है फिर भी भली लगी, मनुष्य के जीवन के विभिन्न स्थितियों को अन्य जीवों से ली गयी उधार की ज़िन्दगी बताना...कभी व्यंग लगता है कभी मार्मिक.....लेकिन सत्य यही है कि हर जीवन को ऐसी परिस्थियों से दो-चार होना ही पड़ता हैं...
    अच्छी प्रस्तुति...

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  2. यह कहानी पुनर्प्रस्तुति मात्र है- मेरे शब्दों में, इसमें दो राय नहीं । कुछ कहानियाँ जो मुझे अच्छी लगती हैं, उन्हें सहेजने का काम मैं यहाँ कर रहा हूँ । यद्यपि इस कहानी के प्रस्तुतिकरण से मैं पूरी तरह संतुष्ट नहीं हूँ । इसे और संवारा-सजाया जा सकता था ।

    आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद !

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  3. kash mnushy ke paas santosh dhan aa jae uddhar to louloop khatm ho tabhee to hoga..........
    acchee lagee kahanee.......

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