सृजन की वेदना
सृजन के पथ पर
निकली हर आह
प्रसव वेदना को सहने का संबल है
जो मन मंजूषा भरी है
भावों से, उनकी आभा पीली है
क्योंकि हर भाव अपनी परिपक्वता में
इसी रंगत में आकर टूट जाता है
पीड़ा अपने चरम पर
आकर बिखर जाती है
सृजन की अंतिम घड़ियों में
वीणा से संगीत भी शांत हो जाता है
और
धीरे से आह निकलती है
कोई जन्म ले रहा है ।
सृजन के पथ पर
जवाब देंहटाएंनिकली हर आह
प्रसव वेदना को सहने का संबल है
जो मन मंजूषा भरी है
भावों से, उनकी आभा पीली है
क्योंकि हर भाव अपनी परिपक्वता में
इसी रंगत में आकर टूट जाता है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
फिर एक सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएं'बिखरे सितारे 'पे comment के लिए तहे दिलसे शुक्रिया !
भाषा संबन्धी त्रुटियाँ ज़रूर बताएँ !